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________________ । ६५४ T नरक-स्वर्ग-निरूपण ग्यारहवें और वारहवें देवलोक के ऊपर, एक दूसरे के ऊपर नौ विमान हैं, जिन्हें अवेयक कहा गया है । इन नौ विमानों में नीचे से तीन विमानों का एक त्रिक, मध्य के तीन विमानों का दूसरा त्रिक और ऊपर के तीन विमानों का तीसरा त्रिक है । प्रथम त्रिक में भद्र. सुभद्र और सुजान नामक गैवेयक हैं, इन तीनों में एक सौ ग्यारह विमान हैं । मध्यम त्रिक में सुमनल, सुदर्शन और प्रियदर्शन नामक तीन पँवयक हैं। इन तीनों में एक सौ सात विमान हैं। तीसरे त्रिक श्रमोह, सुप्रतिबद्ध और यशोधर नामक तीन त्रैबेशक हैं । इन तीनों में सौ विमान हैं । यह सब विमान एक हजार योजन ऊँचे और २२०० योजन विस्तार वाले हैं । अवेयक के देवा का शरीर दो हाथ ऊँचा होता है। नव त्रैवेयक के ऊपर चारों दिशाओं में चार विमान और मध्यम में एक विमान है। इन पांचों को अनुत्तर विमान कहते हैं । इनके नामों का उल्लेख अगली माथाओं में होगा। मूलः हेट्ठिमाहेट्ठिमा चेव, हेट्ठिमामज्झिमा तहा। हेट्ठिमा उवरिमा चेव, मज्झिमा हेट्ठिमा तहा ॥ २३ ॥ • मज्झिमा मज्झिमा चेव, मज्झिमा उवरिभा तहा । उवरिमा हेट्ठिमा चेव, उवरिमा मज्झिमा तहा ॥२४॥ उवरिमा उवरिमा चेव, इय गेविजगा सुरा । विजया वेजयंता य, जयंता अपराजिया ॥ २५ ॥ सव्वत्थ सिद्धगा चेव, पंचहाणुत्तरा सुरा । इइ वेमाणिया एएऽणेगहा एवमायो ।॥ २६ ॥ छाया:-अधस्तनाधस्तनाश्चैव, अधस्त ना मध्यमास्तथा । श्रधस्तनोपरितनाश्चैव, मध्यमाऽस्तनास्तथा ॥ २३ । मध्यमामध्यमाश्चैव, मध्यमोपरितनास्तथा। उपरितनाऽधस्तनाश्चैव, उपरितनमध्यास्तथा ॥ २४ ॥ उपरितनोंपरितनाश्चैव, इति वैयकाः सुराः । विजया वैजयन्ताश्च, जयन्ता अपराजिताः ॥ २५ ॥ सर्वार्थ सिद्धकाश्चैव, पञ्चधाऽनुत्तराः सुराः।। इति वैमानिका एते, अनेकधा एवमादयः ॥ २६ ॥ शब्दार्थ:-ग्रेवयक देवों के वासस्थान रूप नववे यक इस प्रकार हैं-(१) अधस्तनाधस्तन अर्थात् नीचे के त्रिक में से नीचे वाला, (२) अधस्तनमध्यम अर्थात नीचे के त्रिक का वीच वाला, (३) अधस्तन उपरितन अर्थात् नीचे के त्रिक में से ऊपर का, (४) .
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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