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________________ [ ६४८ ] व्यन्तर देवों के असंख्यात नगर } आठ व्यन्तर और आठ वारणव्यन्तर मिल कर व्यन्तरों की संख्या सोलह होती है । व्यन्तरों की यह सोलह जातियां हैं। एक-एक जाति के दो-दो इन्द्र होने के कारण कुल बत्तीस इन्द्र व्यन्तरों में होते हैं । प्रत्येक इन्द्र के चार हजार सामानिक देव, सोलह हजार आत्मरक्षक देव, चार अग्रसहिपियां, सात प्रकार की सेना और तीन प्रकार की परिषद होती है । व्यन्तर इन्द्रों के नाम इस प्रकार हैं: (१) पिशाच- ( २ ) भूत ( ३ ) यक्ष VRCINA ( ४ ) राक्षस( ५ ) किन्नर (६) किंपुरुष - (७) महोरग(८) गंधर्व वाण व्यन्तर देवों के इन्द्रों के - ( ४ ) भूतवाई ( ५ ) कन्दित ( ६ ) महाकन्दित( ७ ) कोहंड - ( - ) पतंग देव नाम ( १ ) पिशाच ( २ ) भूत ( ३ ) यक्ष ( ४ ) राक्षस ( ५ ) किन्नर कालेन्द्र, महाकालेन्द्र प्रतिरूपेन्द्र सुरूपेन्द्र, पूर्णभन्द्रन्द्रे, मणिभद्रेन्द्र भीमेन्द्र, किनरेन्द्र, सुपुरुषेन्द्र, श्रतिकायेन्द्र, गीतरति इंन्द्र, नाम ( १ ) श्रानपन्नी - सन्निहितेन्द्र, घातेन्द्र, (२) पानपन्नी ( ३ ) इसिवाई ( ऋषिवादी ) - ऋषि, ईश्वरेन्द्र, 53 सुवत्स, हास, श्वेत, पतंग, नरक - स्वर्ग - निरूपण " श्वेत हरित महाभीमेन्द्र किंपुरुषेन्द्र महापुरुषेन्द्र महाकायेन्द्र गीतरसेन्द्र जैसा कि पहले कहा गया है, व्यन्तर देव विविध देशों में भ्रमण करते रहतें हैं। टूटे-फूटे घरों में जंगलों में, जलाशयों पर, वृक्षों पर तथा इसी प्रकार के अन्य न्य स्थानों पर रहते हैं । आठ प्रकार के वाणव्यन्तर गंधर्व देवों के ही भेद हैं । यह देव अत्यन्त विनोदशील, हास्यप्रिय, चपल और चंचल चित्त वाले होते हैं इन सब के शरीर का वर्ण और मुकुट का चिह्न इस कोष्टक से प्रतीत होगा: शरीर वर्ण कृष्ण पन्मानेन्द्र विधातेन्द्र ऋषिपाल महेश्वरेन्द्र विशाल रति महाश्वेत पतंगपति मुकुट चिह्न कंदव वृक्ष शालिवृक्ष वटवृक्ष पाटलीवृक्ष अशोकवृक्ष
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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