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________________ लोलहवां अध्याय [ ६२७ ] ___ छाया:-त्रीणि सहस्राणि सप्त शतानि, त्रिसप्ततिश्च उच्छ्वासः । एप मुहूत्ततॊ दृष्टः, सर्वैरनन्त ज्ञानिभिः ॥२०॥ शब्दार्थः-तीन हजार, सात सौ, तिहत्तर उच्छ्वास परिमित काल समस्त सर्वज्ञों ने एक मुहूर्त देखा है। भाष्यः-प्रकृत अध्ययन में आवश्यक कृत्यों का विधान किया है और श्रावश्यक कृत्यों के लिए नियत काल की आवश्यकता होती है । तथा इससे पहले सामायिक का निरूपण किया गया है और सामायिक का समय पूर्वाचार्यों ने एक मुहूर्त नियत किया है। अतएव मुहूर्त का परिमाण बतलाना आवश्यक है। इसीलिए यहां मुहूर्त का काल परिणाम बताया गया है। तीन हजार, सात सौ तिहत्तर उच्छास में जितना समय लगता है, उतना समय एक मुहूर्त कहलाता है । स्वस्थ पुरुष का, स्वाभाविक क्रम ले उच्छ्वास लेना, कालगणना में ग्रहण किया जाता है। . निर्ग्रन्थ-प्रवचन-सोलहवां अध्याय समाप्त
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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