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________________ - अावश्यक कृत्य (१) सामायिक-राग और द्वेष का त्याग करके, समभाव-मध्यस्थ भाव में रहना अर्थात् जगत् के जीव मात्र को अपने ही समान समझना सामायिक कहलाता है। समस्त सावध क्रियाओं का त्याग करके दो घड़ी पर्यन्त समभाव के सरोवर में अवगाहन करना श्रावक की सामायिक क्रिया है। साधु की सामायिक यावजीवन सदैव रहती है, क्योंकि साधु समस्त सावध क्रिया का त्यागी और सदा समभावी रहता है। सामायिक के तीन भेद कहे गये हैं-(१) सम्यक्त्व-सामायिक (२) श्रुत सामायिक और (३) चारित्र सामायिक, क्योंकि सम्यक्त्व, श्रुत और चारित्र के अवलम्बन से साम्यभाव ले मन स्थिर होता है । इनमें से चारित्र सामायिक के दो भेद हैं-(१) देश-चारित्र सामायिक और (२) सर्व चारित्र सामायिक । पहला भेद धावकों को दूसरा साधुओं को होता है। .. सामायिक की बड़ी महिमा है। वास्तविक बात तो यह है कि समभाव के . विना सुख की उपलब्धि नहीं हो सकती। जहां समभाव नहीं है, राग-द्वेष आदि विषय भावों की प्रधानता है, वहां दुःख का दौर दौरा है । जितने अंशों में संमभाव श्रात्मा में उदित होता जाता है, उतने ही अंशों में सुख का उदय होता जाता है। अन्तःकरण को निष्पाप बनाने के लिए सामायिक ही सर्व श्रेष्ठ साधन है। कहा प्रश्न-सामाइयेणं भंते ! जीवे किं जण्यइ ? अर्थात्-भंते ! सामायिक से जीव को क्या लाभ होता है ? उत्तर-सामाइएणं सावजजोगविरई-जणयइ। अर्थात्-सामायिक से पापमय व्यापार के प्रति विरति की उत्पत्ति होती है। पापमय व्यापार अर्थात् लावद्ययोग का त्याग कर देने पर श्रावक भी साधु की कोटि का बन जाता है । यथा. . . सामाइयमि तु कडे, समणो इव लावओ हवह जम्हा। - एतेण कारणेणं, बहुसो लामाइयं कुजा ॥ अर्थात-सामायिक करते समय धावक भी साधु के समान कई अंशों में हो जाता है। इस कारण वहुत बार-बार सामायिक करना चाहिए। (२) चतुर्विंशतिस्तव-चौवीस तीर्थंकरों की स्तुति करना चतुर्विशतिस्तव कहलाता है। स्तव करना अर्थात् गुणों का कीर्तन करना । तीर्थकर भगवान् श्रादर्श महापुरुप हैं, जिन्होंने शत्म शुद्धि का परम श्रादर्श उपस्थित किया है। उनके स्तवन से आत्मा के स्वाभाविक गुणों के प्रति अनुराग उत्पन्न होता है। श्रात्मा उन गुणों को प्राप्त करने के लिए उद्योग शील बनता है । चतुर्विशति स्तव से सम्यक्त्व का वृद्धि भी होती हैं। यथा
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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