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________________ सोलहवां अध्याय [ ६०६ ] प्रमाद की भांति रोग भी शिक्षा-प्राप्ति में बाधक होता है । रोगी शिष्य का चित्त, असाता के कारण अध्ययन में संलग्न नहीं होता और संलग्नता के बिना शिक्षा नहीं प्राप्त होती । श्रतः विद्यार्थी को अपने शारीरिक स्वास्थ्य की ओर अवश्य ध्यान रखना चाहिए । जो केवल बौद्धिक या मानसिक शिक्षा ग्रहण करना चाहता है और शरीर की शिक्षा की तरफ से उदासीन रहता है वह शिक्षा नहीं ग्रहण कर सकता है | अतः जैसे मानसिक स्वास्थ्य की आवश्यकता है, उसी प्रकार शारीरिक स्वास्थ्य की भी विद्यार्थी को आवश्यकता है । विद्वानों का कथन है कि स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन रहता है । अस्वस्थ तनं में स्वस्थ मन रद्द नहीं सकता । ऐसी स्थिति में जो तन की स्वस्थता का ध्यान नहीं रखते वे शिक्षा से वंचित रहते है । . श्रालस्य भी शिक्षा प्राप्ति में बाधक है । जिस विद्यार्थी में फुर्ती नहीं, चुस्ती नहीं, जो मंथर गति से, मरे हुए-से मन से काम करता है, एक घड़ी के कार्य में दो घड़ी लगाता है, श्रालस्य से ग्रस्त होकर जल्दी सो जाना और सूर्योदय तक बिछौने पर पड़ा रहता है, वह भलीभांति शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकता । मूल:- यह श्रहिं ठाणेहिं, सिक्खासीले त्ति वुच्चइ | हस्सिरे सया दंते, न य मम्ममुदाहरे ॥ ६ ॥ नासीले य विसीले य, न सिप्रा इलोलुए । कोहणे सच्चरए, सिक्खासीले चि बुच्च ॥ १०॥ छाया:- श्रथ श्रष्टभिः स्थानंः, शिक्षाशील इत्युच्यते । हसनशीलः सदा दान्तः, न च ममौदाहरेत् ॥ ६ ॥ नाशीतो न विशीलः, न स्यादतिलोलुपः । क्रोधनः सत्यरतः, शिक्षाशील इत्युच्यते ॥ १० ॥ शब्दार्थ :- हे गौतम! आठ कारणों से शिष्य शिक्षाशील कहा जाता है: ( १ ) हँसोड़ न हो ( २ ) सदा इन्द्रियों को अपने अधीन रखता हो ( ३ ) मर्मवेधी या दूसरे फी गुप्त बात प्रकट करनेवाली भाषा न बोलता हो ( ४ ) शील से सर्वथा रहित न हो (५) शील को दूषित करनेवाला न हो ( ६ ) अत्यन्त लोलुप न हो ( ७ ) क्रोधी स्वभाव का न हो और (5) सत्य में रत रहने वाला हो । भाष्यः- शिक्षा - प्राप्ति के लिए यहां जिन गुणों की आवश्यकता प्रतिपादित की गई है, उस पर विवेचन करने की आवश्यकता नहीं। शिष्य को अधिक हँसो न होकर गंभीरवृत्ति वाला होना चाहिए । यद्यपि प्रसन्नचिचता श्रावश्यक है, पर अत्यंत हँसोड़पन क्षुद्रता प्रकट करता है । अतएव शिष्य को हँसोड़पन का त्याग करना चाहिए । इन्द्रियों पर अंकुश रखना चाहिए। जो इन्द्रियों का दमन न करेगा वह
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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