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________________ indializintenderstandsinlae niemendothe सोलहवा अध्याय [६७ । क्षानी पुरुष ऐसा नहीं करते । वे जिस प्रकार जीवन के लोभ से जीवित रहने की कामना से मुक्त होते हैं, उसी प्रकार परलोक के परमोत्तम सुख की आकांक्षा से या - जीवन से तंग आकर मृत्यु की कामना भी नहीं करते । उनका समभाव इतना जीवित और विकसित होता है कि उन्हें दोनों अवस्थाओं में किसी प्रकार की विषमता ही अनुभूत नहीं होती । मृत्यु आने पर वे दुःखी नहीं होते, यही सकाममरण का आशय है। इस प्रकार जीवन और मृत्यु के रहस्य को वास्तविक रूप से जानने वाले पंडित पुरुष मृत्यु से घबराते नहीं हैं। वे मृत्यु को इतना उत्तम रूप देते हैं कि उन्हें फिर कभी मृत्यु के पंजे में नहीं फंसना पड़ता। अतएव प्रत्येक भव्य पुरुष को मृत्यु: काल में समाधि रखना चाहिए और तनिक भी व्याकुल नहीं होना चाहिए। . मूलः-सत्थग्गहणं विसभक्खणं च,जलणं च जलपवेसोया प्रणायारभंडसेवी, जम्मणमरणाणि बंधति ॥७॥ छाया:-शस्त्रग्रहणं विपभक्षणञ्च, ज्वलनञ्च जलप्रवेशश्च । अनाचारभाण्डसेवी, जन्ममरणोणि बध्येते ॥ ७ ॥ शब्दार्थ:-जो अज्ञानी आत्मघात के लिए शस्त्र का प्रयोग करते हैं, विषमक्षण करते हैं, अग्नि में प्रवेश करते हैं, जल में प्रवेश करते हैं और न सेवन करने योग्य सामग्री का सेवन करते हैं, वे अनेक वार जन्म-सरण करने योग्य कर्म बांधते हैं। भाष्यः-इससे पूर्व गाथा में सकाम सरण का जो स्वरूप बताया गया है, उससे कोई आत्मघात करने का अभिप्राय न समझे, इस बात के स्पष्टी करण के लिए शास्त्रकार स्वयं आत्मघात जन्य अनर्थ का वर्णन करते हैं। . ___ प्राचीन काल में देहपात करना धर्म लमझा जाता था। अनेक अहानी पुरुष स्वेच्छा से, परलोक के सुखों का भोग करने के लिए अपने स्वस्थ और सशक्त शरीर का त्याग कर देते थे। इस क्रिया को वे समाधि कहते थे। समाधि लेने की प्रज्ञानपूर्ण क्रिया के उद्देश्य का विचार किया जाय तो पता 'चलेगा कि उसके मूल में लोभ कबाय या द्वेप कपाय हैं । या तो जीरन क प्रति घृणा उत्पन्न होने से, जो कि द्वेष का ही एक रूप है, आत्मघात किया जाता है या परलोक के स्वर्गीय सुख शीघ्र पा लेने की प्रवल अभिलाषा से । इन में से या इसीसे मिलता जुलता कोई अन्य कारण हो तोभी. यह स्पष्ट है कि भात्मघात में कषाय की भावना विद्यमान है। जहां कपाय हैं वहां धर्म नहीं। अतएव आत्मघात की क्रिया अधर्म का कारण है। धार्मिक दृष्टि के अतिरिक्त, किली लौकिक कारण से किया जाने वाला 'अात्मघात तो सर्वसम्मत अधर्म है ही। - इसी अर्थ को शास्त्रकार ने स्पष्ट किया है। धर्म-लाम के लिए या क्रोध आदि के तीन श्रावेश में आकर जो लोग अपघात करने के लिए शस्त्र का प्रयोग करते हैं,
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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