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________________ [ ५६४ ] मनोनिग्रह असत्य रूप भी नहीं वह असत्यामृषा मनोयोग कहलाता है । इसे ग्रनुभय रूप मनोयोग भी कहते हैं । सर्वज्ञ भगवान के द्वारा प्ररूपित वस्तुत्व का यथार्थ चिन्तन सत्यमनोयोग और इससे विपरीत चिन्तन असत्य मनोयोग है । जहां इन दोनों बातों की कल्पना नहीं होती वह अनुभव मनोयोग कहलाता है । जैसे--' देवदत्त, पुस्तक. लाओ । ' इस प्रकार के चिन्तन में सत्य-असत्य की कल्पना नहीं की जा सकती । इससे आराधक, विराधक का भी विकल्प नहीं उठता । श्रतएव इस प्रकार का विचार श्रसत्यामृषा मनोयोग है । यह चौथा विकल्प व्यवहारनय से समझना चाहिए | निश्वयनय से यह भी सत्य या असत्य में समाविष्ट हो जाता है । - उल्लिखित चार मनोयोगों को रोकना मनोगुप्ति है । मगर योग का निरोध चौदहवें गुणस्थान में होता है, उससे पहले नहीं । अतएव पहले असत्य मनोयोग का और उभय रूप ( सत्य- मृषा ) मनोयोग का त्याग करके गुप्ति की आराधना करनी चाहिए । मूल :- संरभसमारंभ, आरंभम्मि तव य । मणं पवत्तमाणं तु, नियत्तिज्ज जयं जई ॥ ४ ॥ छाया:-संरम्भे समारम्भे, श्रारम्से तथैव च । मनः प्रवर्त्तमानं तु निवर्त्तयेत् यतं यतिः ॥ ४ ॥ शब्दार्थ :- हे इन्द्रभूति ! मुनि संरंभ में, समारंभ में और आरंभ में प्रवृत्त होने वाले मन को यतनापूर्वक निवृत्त करे । I' भाप्यः- - पूर्व गाथा में मनोगुति के भेदों का निरूपण करके यहां यह प्रतिपादन किया गया है कि इन को किस विषय में प्रवृत्त होने से रोकना चाहिए। I " 'प्राणव्य परोपणादिषु प्रमादवतः प्रयत्नावेशः संरम्भः । ' अर्थात् प्रमादी जीव का प्राणव्ययरोपण ( हिंसा) आदि असत् कार्यों में प्रयत्न का प्रवेश दोन संरम्भ कहलाता है । 'साधनाभ्यासीक समारम्भः ।' अर्थात् हिंसा श्रादि के साधन जुटाना समारंभ कहलाता है । प्रकयः आरम्भः । ' अर्थात् हिंसा आदि सप कार्य को शुरू कर देना प्रारंभ कहा गया है 1 तात्पर्य यह है कि किसी भी पाप कार्य को करते समय तीन अवस्थाएँ होती | सर्वप्रथम जीव पाप कर्म करने का संकल्प करता है । संकल्प करने के पश्चात उस कार्य को सम्पन्न करने के लिए यथोचित सामग्री जुटाता है और फिर उसे आरंभ करता है । यहीती समारंभ और प्रारंभ कहलाती हैं । यद्यपि यह अवस्थाएँ मानसिक भी होती है, वाचिक मी होती हैं और कार्यिक भी होती है अर्थात मन से संसार आरंभ किया जाता है, यंत्र से
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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