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________________ धैराग्य सम्बोधन अहिंसा कहा है। जिस झान की प्राप्ति के फल-स्वरूप अहिंसा की उपलब्धि नहीं होती वह ज्ञान निस्सार है ज्ञान की सार्थकता अहिंसा में है। :: ...... अहिंसा शब्द यहां व्यापक भावना के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है। वास्तव में अहिंसा तत्त्व इतना व्यापक है कि सूक्ष्म दृष्टि से विचार किया जाय तो सम्पूर्ण सदाचार का उसमें समावेश हो जाता है। अतएव ज्ञान का सार सदाचार है, यह भी कहने में आपत्ति नहीं है। 'ज्ञानं भारः क्रियां विना' अर्थात् सम्यक चारित्र के.. विना हान भार रूप है। उस वृक्ष से क्या लाभ है जो फल नहीं देता ? इसी प्रकार वह छान किस काम का है जिल से सदाचार का पोषण नहीं होता १ लान का प्रयोजन, शान का सार, सदाचार में ही निहित है। जैसे सूर्योदय होने पर कमल विक-- सित हो जाता है उसी प्रकार ज्ञान प्राप्त होने पर अहिंसा रूप सदाचार का उदय होना चाहिए। अहिंसा को इतनी अधिक माहिमा है, अतएव वीतराग भगवान् द्वारा उपदिष्ट आगम का प्रधान प्रतिपाद्य विषय अहिंसा है। अहिंसा का ही भागों में विस्तार किया गया है। सत्य, श्रचौर्य आदि वत, अहिंसा रूपी वृक्ष की शास्त्राएं हैं और अहिंसा ही मूल भूत तत्त्व है। आगम में प्ररूपित सम्यक् चारित्र को ध्यान पूर्वक निरीक्षण करने से विदित होता है कि सर्वत्र अहिंसा की दृष्टि ही ओत-प्रोत है और उसी की पुष्टि के लिए चारित्र का विस्तार किया गया है। वस्तुतः जिसके जीवन में अहिंसा-तत्त्व की प्रतिष्ठा हो चुकी है उसका कोई भी व्यवहार सदाचार से विसंगत नहीं हो सकता। - अहिंसा विज्ञान है। जो लोग भ्रमवश यह मान बैठे हैं कि प्राचीन काल में विज्ञान के स्वरूप से परिचय नहीं था। और विज्ञान अाधुनिक काल का घरदान है, उन्हें इस वाक्यांश पर ध्यान देना चाहिए। हां, यह निस्सन्देह कहा जा सकता है कि आधुनिक विज्ञान हिंसा की नींव पर स्थित है और प्राचीन कालीन विज्ञान, जैसा कि यहां यतलाया गया है, अहिंसा रूप था। वर्तमान में विज्ञान को अहिंसा की भूमिका से हटा कर हिंसा की मूमिका पर आरोपित किया गया है। इस कारण वह प्राज मानव समाज के लिए दिव्य वरदान . के पदले घोर अभिशाप सिद्ध हो रहा है। विश्व में जो आमूलचूल अशान्ति, असाता और अव्यवस्था दिसलाई पड़ती है उसका एक मात्र प्रधान कारण यही है कि विज्ञान अहिंसा के क्षेत्र को छोड़ गया हैं। और जब तक वह पुनः अहिंसा की शीतल छाया तले नहीं आ जायगा तयतक मानव-समाज उससे सुखी न हो सकेगा। वह भीषण संहार कारक साधनों के द्वारा, राष्ट्रीयता, धर्म, सम्प्रदाय, श्रादि के बहाने मनुष्यसमाज पर भीषण वज्रपात करता ही रहेगा । अहिंसा निरपेक्ष विज्ञान इससे अधिक अन्य कुछ भी नहीं कर सकता । इसके विपरित जो विज्ञान अहिंसा-सापेक्ष है, यह मानवसमाज की स्मृद्धि, शान्ति और साता को उत्पन्न करता एवं वदाता है। यहां यह कहा जा सकता है कि विज्ञान का कार्य साधनों का प्राविकार करना
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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