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________________ aroo वैराग्य सम्बोधन गर्भस्थ मनुष्य भी अपने जीवन को त्याग देते हैं, इस सत्य को देखो । जैसे बाज पक्षी तीतर को मार डालता है, उसी प्रकार श्रायु का क्षय होने पर मनुष्य का जीवन समाप्त हो जाता है। भाध्या-अनन्तर गाथा में मनुष्य भव की दुर्लभता का प्रतिपादन किया गया था। यहां प्राप्त हुशा मनुष्य जीवन भी चिरस्थायी एवं नियत समय तक स्थिर रहने बाला नहीं है, यह बतलाया जा रहा है। शानेक मनुष्य विषयभागों में आसक्त होकर यह विचार करते हैं कि अभी यौवन अवस्था में संसार सम्बन्धी सुखों का शास्वादन करलें, फिर इच्छाएँ जर. शान्त हो लेंगी तब धर्म का श्राचरण करेंगे। ऐले मनुष्यों को समझाने के लिए भगवान् कहते हैं-मनुष्यों की उत्कृष्ट अायु यद्यपि तीन पल्य की है, फिर भी तीन पल्य तक जीवन टिकना निश्चित नहीं है। अनेक मनुष्य बाल्यकाल में ही प्राण त्याग देते हैं। अनेक वृद्धावस्था तक पहुंचते हैं तो अनेक ऐसे भी हैं जो गर्भ में आकर एक मुहर्त पूर्ण होने से पहले ही चल बसते हैं। वह शव प्रत्यक्ष से देखो-लोक में सदैव इस प्रकार की मृत्यु-घटनाएँ घटती रहती हैं। जब यह निश्चित है कि जीवन का कुछ भी ठिकाना नहीं है, कल तक जीवित रहने का भी भरोसा नहीं किया जा सकता तो वृद्धावस्था की राह देख कर बैठ रहना बुद्धिमत्ता नहीं है। जैसे वाज पक्षी तितर पर अचानक सपट कर उसके प्राणों का तत्काल अन्त कर देता है, उसी प्रकार मृत्यु भी क्षण मनुष्य के जीवन पर आझमण करके प्राणों का अन्त कर देती है । अतः बुद्धिमान् पुरुष को अमूल्य मानव भर माकर, एक भी क्षण का प्रमाद न करते हुए शीत ही श्रात्महित में संलग्न होना चाहिए। मूलः-मायाहिं पियाहिं लुप्पड़, नो सुलहा सुगई य पेच्चो । एयाई भयाई पेहिया, प्रारंभा विर मेज सुव्वए ॥३॥ हाय!:-मामि पितृभिलप्यते, गो सुनमा सुगनिधीत्व ।। प्रतानि भयानि मेघय, यारन्माद विरमेन् मुमतः ।।३।। शब्दार्थ:--कोई-कोई माता पिता आदि स्वजनों के स्नेह में पड़कर संसार में भ्रमराह जापरलोक में मुगति की प्राप्ति होना सरल नहीं है। नुव्रत पुरुप इन भयों का विचार कर के प्रारम्भ से निवृत्त हो जाय। सारासायी अनित्यता का निरूपण कर यहां यह बताया गया है कि पसिमित मायु वि.स प्रकार व्यर्थ चली जाती है और वियेकी पुरुषों का कर्तव्य क्या है? सामाविद यहां उपलक्षम हैं। इन शब्दों से यहां भ्राता, पुल, पनी शादि-आदिमानों तथा अन्य स्नेहीजनों का प्रहार करना चाहिर । तात्पर्य यह है कि मनुष्य स्वजनीक कद-जाल में ऐसे फल रहते हैं कि उन्हें चपन उदार नकलव्य की पूनं करने का अवसर ही नहीं मिल पाता। स्नेट, मोर या
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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