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________________ लेश्या-स्वरूप निरूपण छाया:-नीचवृत्तिरचपलः श्रमाय्यकुतूहलः।। . विनीतविनयो दान्तः, योगवानुपधानवान् ॥ ८॥ नियधर्मा दृढधर्मा, अवद्यभारहितैपिकः। - एतद्योगसमायुक्नः तेजोलेश्यां तु परिणमेत् ॥ ६ ॥ शब्दा-नम्रता युक्त वृत्ति वाला, चपलता रहित, मायाचार से रहित, कौतुहल की वृत्ति से शून्य, गुरुजनों का विनय करने वाला, इन्द्रियों का दमन करने वाला, शुभ । योग वाला, तपस्या करने वाला, धर्म प्रेमी, दृढ़धर्मी, पाप से डरने वाला; आत्म-कल्याण . की इच्छा वाला पुरुष तेजो लेश्या से युक्त होता है। भाष्यः-कापोत लेश्या के परिणामों का उल्लेख करने के पश्चात् यहां तेजोलेश्या के परिणाम बताये गये हैं। जिस पुरुष की प्रकृति में नम्रता हो, चंचलता न हो, छल-कपट की वृत्ति न पाई जाती हो, अति कौतूहल वृत्ति न हो, जो अपने गुरुजनों का अर्थात् गृहस्थावस्था में माता, पिता, शिक्षक, धर्मगुरु आदि का तथा संयत अवस्था में रत्नाधिक एव श्राचार्य श्रादि का विनय करता हो,-जिलके स्वभाव में ही विनीतता विद्यमान हो, जो अपनी इन्द्रियों की बागडोर अपने काबू में रखता हो यार्थात् इन्द्रियों का स्वामी हो ( दाल नहीं), जो प्रशस्त व्यापार में निरत रहता हो अर्थात मन वचन और काय को अशुभ क्रियाओं में न लगाता हो, जो शक्ति के अनुसार तपस्या करता हो, जिसे धर्म के प्रति प्रेम भाव हो, धर्म में जिसका. दृढ़ श्रद्धा हो, पाप कार्यों से भयभीत रहता हो अर्थात् पापों से होने वाले इस लोक और परलोक संबंधी भयों का विचार करके जो पापाचरण न करता हो, तथा जो आत्मा के सच्चे एवं शाश्वत हित के अन्वेषण में उद्योगशील हो, उसे तेजोलेश्या समझनी चाहिए। तेजोलेश्या शुभलेश्या है और यह तिर्यञ्चों, मनुष्यों एवं देवों के होती है, नारकी जीवों को नहीं होती। मूल:-पयणुकोहमाणे य, मायालोभे य पयणुए। पसंतचित्ते दंतप्पा, जोगवं उवहाणवं ॥ १० ॥ तहा पयणुवाईय, उवसंते जिइंदिए । एयजोग समाउत्तो, पम्हलेसं तु परिणमे ॥ ११ ॥ छायाः-प्रतनुक्रोधमानश्च, मायालोभौ च प्रतनुको। ' प्रशान्तचित्तो दान्तात्मा, योगवानुपधानवान् ॥ १० ॥ तथा प्रतनुवादी च, उपशान्तो जितेन्द्रियः। .. एतयोग समायुक्रः, पद्मलेश्यां तु परिणभेत् ॥ ११॥ शब्दार्थ:-जिसके क्रोध, मान, माया और लोभ पतले पड़ गये हो, जिसका चित्त प्रशान्त हो, जो इन्द्रियों को तथा मन को दमन करने वाला हो, जिसका योग-व्यापार
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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