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________________ -- लेश्या-स्वरूप निरूपण मन, वचन और काय की शुभ या अशुभ परिणति, जो कषायोदय से अनुरंजित होती है, उसे भाव लेश्या कहते हैं। यह श्रात्मा का ही परिणाम-विशेष है। परिणाम- . भेद से भाव लेश्या के असंख्य भेद हैं, तथापि सरलता से समझने के लिए शास्त्रों में उसके छह स्थूल भेदों का वर्णन किया गया है । इन भेदों को समझने के लिए निम्न लिखित उदाहरण उपयुक्त है। छह पुरुष जामुन स्नाने के लिए चले । चलते-चलते उन्हें जामुन का वृक्ष दिखाई दिया। वृक्ष को देख कर उनमें से एक ने कहा-'लो यह रहा जामुन का वृक्ष । इसके फल खाने के लिए ऊपर चढ़ने के झगड़े में पड़ने की आवश्यकता नहीं है। फलों से लदी हुई बड़ी-बड़ी शास्त्राओं वाले इस जामुन वृक्ष को ही काट डालना चाहिए, फिर श्राराम से जामुन साए जाएँगे।' दुसरे पुरुष ने कहा-'वृक्ष काटना तो ठीक नहीं है, इसकी मोटी-मोटी शाखाएँ ही काट लेना चाहिए। ... :: .. तीसरा कहने लगा- मोटी-मोटी शास्त्राएँ काटने से भी क्या लाभ है ? उस की छोटी-छोटी शास्त्राएँ (प्रशाखाएँ ) काट लेने से ही काम चल सकता है।' चौथा पुरुष चोला-'छोटी-छोटी शाखाएँ काटने से भी क्या लाभ होगा, फलों के गुच्छे ही तोड़ना काफी है।' पांचवें ने कहा-'गुच्छे तोड़ना भी व्यर्थ है । सिर्फ पके-पके फल तोड़ । लीजिए।' . . ... छठे ने कहा-'श्राप सय का कहना मुझे नहीं ऊँचता । हमें पके हुए फलों से प्रयोजन है और पके फल नीचे टपके हुए पड़े हैं। उन्हीं को उठा लेने से हमारा प्रयोजन सिद्ध हो जाता है तो व्यर्थ वृक्ष आदि को तोड़ने से क्या लाभ है !' - इसी प्रकार लेश्याओं के स्वरूप को सरलता से समझाने के लिए छह डाकुओं का दृष्टान्त भी उपयोगी है। वह इस प्रकार है:__.. छह पुरुष किसी गांव को लूटने के लिए चले । जब वह गांव आ गया तो उनमें से पहला आदमी बोला-'इस गांव को तहस नहस कर डालो-पशु-पक्षी, पुरुष स्त्री आदि जो कोई सामने आवे उनसव को मार डालो और गांव लूट लो।' . दुसरे ने कहा-'पशु-पक्षी आदि को क्यों मारा जाय ? सिर्फ मनुष्यों को मारना चाहिए।'. . . तीसरा बोला-'उनमें भी स्त्रियों को नहीं, सिर्फ पुरुषों को ही मारना चाहिए। चौथा कहने लगा-'सव पुरुषों को मारना ठीक नहीं, जो सशस्त्र दो उन्हीं को मारना चाहिए। पांचवें ने कहा-'सशस्त्र होने पर भी जो विरोध न कर उन्हें नहीं मारना वाहिए।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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