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________________ समर्प 88888888 परम आदरणीय, शास्त्रज्ञ, महान् त्यागी, वैरागी, गम्भीर स्वभाव के आदर्श-पाठ, एवं अनुपम धैर्यवान्, श्रीमज्जैनाचार्य श्रीखूबचन्दजी महाराजं, आपके आचार्यत्व - काल में, सम्प्रदाय की आपके नाम के अनुसार "खूब" अभिवृद्धि हुई । उसे जीवन मिला । वह भारतवर्ष में खूब पनपा, फूला, सौरभवान् बना, और फला । इसका सारा श्रेय आपके सतत शास्त्र - चिन्तन, महान् त्याग, वन्दनीय वैराग्य, गम्भीर स्वभाव, एवं अनुप धैर्य ही को है । आपके इन्हीं गुणों से आकृष्ट होकर " निर्ग्रन्थ-3 - प्रवचन- भाष्य " आपके " करकमलों में सादर समर्पित किया जा रहा है । I 'आपके चरणों का ध्रुव विश्वास है कि भवभय - विनाशक वीतराग भगवान्की पवित्रतम वाणी को आबालवृद्ध नर-नारियों के कानों तक घर-घर पहुँचाने का यह प्रयास संसार के किसी भी देश, किसी भी काल और कैसी ही अवस्था के पात्र को सच्चे सम्बल का काम देगा । जहां यह रोगियों को रोगमुक्त कर अमृत का पान करावेगा वहां चिन्ताग्रस्तों के लिए यह चिन्तामणि बनेगा । एक ओर विश्व वीहड़वन में विचरणशील भूले-भटकों के लिए यह प्रशस्त राज-पथ का काम देगा तो दूसरी ओर संसार के वैभव में चूर और मदमाते व्यक्तियों की आंखें सदा के लिए खोल कर उन्हें लोककल्याण के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए लालायित बनावेगा । आचार्य - प्रवर ! आपकी कृपा से भगवान् की पवित्रतम वाणी का यह छोटा-सा प्रयास, मेरी उपरोक्त ध्रुव धारणा को सफलीभूत बना सके । विनीत:गणि- "प्यारचन्द्र" - मुनि
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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