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________________ - ग्यारहवां अध्याय - [ ४०५ ] समाधान-शब्द में स्पर्श है तो, वह अव्या है-प्रकट नहीं है । जैसे सुगंध के आधार भूत पदार्थ में, गंध होने से स्पर्श का होना तो निश्चित है, फिर भी उसमें स्पर्श का श्रानुभव नहीं होता, क्योंकि वह अव्यक्त है, इसी प्रकार शब्द का स्पर्श प्रकट न होने के कारण हमें प्रतीत नहीं होता। __शंका-सुगंध के आधार भूत द्रव्य में तो गंध के होने से स्पर्श का होना अनुमान किया जाता है, क्योंकि जहां गंध होता है वहां स्पर्श भी अवश्य होता है। किन्तु शब्द में स्पर्श होने का निश्चय किस प्रकार किया जा सकता है। समाधान-जब वायु अनुकूल होती है तो शब्द बोलने वाला यदि दूरी पर खड़ा हो तो भी स्पष्ट रूप से शब्द सुनाई देता है। प्रतिकूल वायु होने पर पास में बोलने पर भी स्पष्ट सुनना कठिन हो जाता है । इलका क्या कारण है ? इस भेद का एक मात्र कारण यही है कि प्रतिकूल वायु शब्द का प्रतिरोध करती है और अनुकूल वायु उसके संचार में सहायक होती है। वायु का शब्द पर इस प्रकार प्रभाव पड़ना स्पष्ट है । शब्द यदि स्पर्शवान् न होता-श्ररूपी होता तो उस पर वायु का प्रभाव नहीं पड़ सकता था। इस प्रमाण ले यह स्पष्ट हो जाता है कि शब्द स्पर्शवाला है और स्प. शिवाला होने के कारण पौद्गलिक है। (२) दूसरी युल्लि गंध द्रव्य से बाधित हो जाती है। गंधद्रव्य रूपी है, पौदगलिक है, फिर भी मकान के भीतर का गंध, किवाड़ बंद होने पर भी बाहर आ जाता है और बाहर का गंध मकान के भीतर चला जाता है । इसी प्रकार शब्द पौद्गलिक होने पर भी पा जा सकता है। शका-किवाड़ो में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। उन छिद्रो में होकर गंध भाता है। यही कारण है कि किवाड़ खुले होने पर अधिक गंध आता है और चन्द होने पर थोड़ा सा ही । इसलिए गंध न तो सघन प्रदेश में घुसता है, न निकलता है। समाधान-जो बात आप गंध के लिए कहते हैं वही चात शब्द के लिए भी कही जा सकती है । शब्द भी, गंध की तरह सदम छिद्रों में होकर ही अाता-जाता है। यही कारण है कि खुले में जैसे स्पष्ट शब्द सुनाई देता है उस प्रकार बन्द किवाड़ों में होकर नहीं सुन परता। अतएव यह कहना अनुचित है कि शब्द सघन प्रदेश में भी आता-जाता है। (३) तिसरी युति विद्युत् और इन्द्र धनुप श्रादि से पित है । विजली और इन्द्र धनुष पोद्गलिक हैं, यह बात आपको भी मान्य है, परन्तु न तो उनकी उत्पत्ति होने से पहले, उनका पूर्ववर्ती रूप देखा जाता है और न उनके नष्ट हो जाने के पश्चात् उत्तर कालीन रूप ही दिखाई देता है। फिर भी जैसे बिजली सादि को आपने पौदगलिक माना है उसी प्रकार शब्द को पोद्गलिफ मानने में या हानि है ? (४) चौथी युक्ति भी निस्सार है। सूक्ष्म रज, धूप, गंध यादि अनेक पौद्गलिक पदार्थ दूसरे पदार्थ में प्रेरणा उत्पन्न नहीं करते, फिर भी ये पौद्गलिक है, इसी प्रकार
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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