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________________ - - - - misia दसवां अध्याय हार करना और श्रात्मरत होकर श्राध्यात्मिक आनन्द-लाम करना है। इसीलिए भगवान् कहते हैं-गौतम ! समय मात्र भी प्रमाद न करो। जो मौका मिल गया है उसे हाथ से न जाने दो। भूला-देवे नेरइए अइगो, उक्कोसं जीवो उ संवसे । इकिकमवग्गहणे, समयं गोयम ! मा पमायए ॥१४॥ छाया:-देवे नैरयिक प्रतिगतः, उत्कर्षतो जीवस्तु संवसेत् । ___ एकैकमवग्रहणं, समयं गौतम ! मा प्रमादीः ।। १४ ॥ शब्दार्थ:--हे गौतम ! देवभव और नरकमव में गया हुआ जीव उत्कृष्ट एक-एक भव तक वहीं रहता है--तेंतीस सागरोपम जितना दीर्घकाल वहां व्यतीत करता है, इस लिए समय मात्र का भी प्रमाद मत करो। भाष्यः- इस गाथा की व्याख्या सुगम है। पहले के समान ही समझना चाहिए। तात्पर्य यह है कि देव मृत्यु के पश्चात् निरन्तर भव में पुनः देव नहीं होता और नारकी पुनः नारकी नहीं होता। अतएव दोनों गतियों की कायस्थिति एक-एक भव ही है, किन्तु यह काल बहुत लम्बा है । नरक गति की वेदनाएँ असह्य होती हैं और देव भव में श्रात्मकल्याण की विशेष अनुकूलता नहीं होती। इसलिए ऐसा प्रयत्न करना उचित है जिससे इन भवों से बच सके। मूलः-एवं भवसंसोर, संसरइ सुहासुहेहिं कम्मेहिं । जीवो पमायवहुलो, समयं गोयम ! मा पमायए ॥१५॥ छायाः-एवं भवसंसारे, संसरति शुभाशुभैः कर्मभिः। जीवः प्रमादबहुलः, समयं गीतम! मा प्रमादीः ।। १५ ॥ शब्दार्थ:--हे गौतम ! अति प्रमाद वाला जीव, इस जन्म-मरण रूप संसार में,शुभ'अशुभ कर्मों के अनुसार भ्रमण करता रहता है। इसलिए समय मात्र का भी प्रमाद न करो। ___ भाप्यः-पूर्वोक्त भव-भ्रमण का उपसंहार करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि इस प्रकार पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति रूप एकेन्द्रिय कायों में तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय नरक तिर्यच एवं देव गतिमें पुनः पुनः जन्म और पुन:-पुनः मरण के घोर कष्ट लहन करता हुथा जीव संसार में भटकता फिरता है। भव-भ्रमण का कारण प्रमाद सी बहुलता है। प्रमाद का स्वरूप पहले कहा जा चुका है। उसी के प्रभाव से जीव अनादिकाल से चौरासी के चमर में फंसा हुना है और जब तक वह प्रमाद का परित्याग नहीं करेगा तब तक फँसा रहेगा। नाना श्रवस्थानों में रहा हुना जीव कभी शुभ कर्मों का उपार्जन करता है और काली अशुभ कमों का। अशुभ कमों के फल-स्वरूप नरक-निगोद, तिर्यच प्रादि
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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