SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दसवां अध्याय [ ३८१ ) वनस्पतिकाय में अनंत काल तक जीव निवास करता है। निगोद वनस्पति के जीवों के विषय में पहले कहा जा चुका है। मूल:-बेइंदियकायमइगो, उकोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिजसगिणनं, समयं गोयम ! मा पमायए॥१०॥ छाया:-द्वीन्द्रियकायमतिगतः, उत्कर्षतो जीवस्तु संवलेतः । कालं संख्येयसंज्ञितं, समयं गौतम ! मा प्रमादीः ।। १० ।। शब्दार्थ:-हे गौतम ! दो-इन्द्रिय काय में गया हुआ जीव उत्कृष्ट संख्यात काल तक वहाँ वना रहता है, इसलिए समय मात्र भी प्रमाद मत करो। भाष्यः-स्थावर जीवों में जाकर यह आत्मा कितना समय वहां व्यतीत करता है, यह बताने के पश्चात् शव नस पर्याय की कायस्थिति बतलाते हुए सर्व प्रथम द्वीन्द्रिय की कायस्थिति का यहां उल्लेख किया गया है। जीव जब दो इन्द्रिय वाले शरीर में जाता है तब वहां एक भव में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चारह वर्ष तक रहता है। तत्पश्चात् मृत्यु को प्राप्त होकर फिर द्वीन्द्रिय हो सकता है, और इस प्रकार संख्यात काल उसी अवस्था में व्यतीत कर सकता है। यह अवस्था एकेन्द्रिय की अपेक्षा कुछ अधिक विकसित अवस्था है इसमें स्पर्शनेन्द्रिय के साथ रसनेन्द्रिय भी प्राप्त होती है, फिर भी वहां धर्म साधन या प्रात्महितकारिणी प्रवृत्ति का सर्वथा अभाव है। श्रतएव वह सर्वथा अवांछनीय है। इस अवस्था से बचने का मार्ग यही है कि मनुष्यभव पाकर प्रमाद न करते हुए धर्म की आराधना की जाय। भूल:-तेइंदिकायमइगो, उक्कोसं जीवो उ संबसे । कालं संखिजसगिण,समयं गोयम ! मा पमायए ॥१२॥ छाया:-श्रीन्द्रियकायमतिगतः, उत्कर्पतो जीवस्तु संवसेत् । ___कालं संख्येयसंज्ञितं, समयं गौतम ! मा प्रमादीः ।। ११ ॥ शब्दार्थ:-हे गौतम ! तीन इन्द्रिय वाली योनि में जाकर जीव वहाँ उत्कृष्ट संख्यात काल तक रहता है, अतएव एक समय का भी प्रमाद न करो। भाष्यः-वीन्द्रिय जीवों को स्पर्शन और रसना इन्द्रिय के साथ प्राण इन्द्रिय भी होती है। वे सुगन्ध और दुर्गन्ध को ग्रहण कर सकते हैं। श्रीन्द्रिय जीवों की जघन्य भवस्थिति अन्तर्मुहर्त ही उत्कृष्ट उन्नवास (४६) दिन की है और कायस्थिति संन्यात काल की ई । शेष अंश की व्याख्या पूर्ववत् समझना चाहिए।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy