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________________ • पृाया नवां अध्याय [ ३३७ ] इसे अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र कहा है। मुनि न स्वयं अग्नि जलाते हैं और न दूसरों से जलवाते हैं। अग्नि का श्रारम्भ अत्यन्त पाप का कारण है। अतएव उक्त प्रकार के जीवों का स्वयं प्रारम्भं न करने वाले और दूसरों से आरम्भ न कराने वाले ही वास्तव में लाधु पद को प्राप्त होते हैं । इस कथन से आग जला कर तपस्या करना, श्रादि पापमूलक तपों का निषेध “भी हो जाता है। पृथिवीकाय का दूसरा नाम इन्दीथावरकाय है । काली मिट्टी, हरी मिट्टी, पीली मिट्टी, लाल मिट्टी, श्वेत मिट्टी, पाण्डु और गोपीचन्दन, यह सात प्रकार की कोमल पृथिवी है। खदान की मिट्टी, सुरड़, रेत, पत्थर, सिला, नमक, हरिताल, हिंगलू , मैनसिल, प्रवाल, अभ्रक, पास प्रादि बाईस प्रकार की कठोर पृथिवी होती है । यह लव पृथिवी जब खानि में होती है तब सचित्त और खान से पृथक् कर देने पर शस्त्र परिणत पृथिवी अचित्त हो जाती है। अपकाय का अपर नाम वंभीथावरकाय है । वर्षा का जल, श्रोले, वर्फ, नदी, समुद्र आदि जलाशयों का जल, आदि सब इसीमें सम्मिलित है। तेजस्काय का दूसरा नाम सप्पीथावरकाय है। सूभर, ज्वाला, अंगार, अरणिजन्य अग्नि, दियाललाई से उत्पन्न अग्नि, विद्युत्, सूर्यकान्त माण, उल्कापात आदि का इसमें समावेश होता है। इनका यथार्थ स्वरूप लमझकर विवेकशील साधु को इनकी हिंसा से सर्वथा बचना चाहिए और श्रावक को निष्प्रयोजन प्रारम्भ नहीं करना चाहिए। मूलः-अनिलेण न बीए न वीयावए, हरियाणि न छिदे न छिंदावए । वीयाणि सया विवजयंतो, सचित्तं नाहारए जे स भिक्खू ॥१०॥ छाया:-अनिलेन न बीजयेत न बीजायेत् , हरितानि न हिम्दयेन्न छेदयेत् । __ बीजानि सदा विवर्जयत , सचित्तं नाहरेद् यः स भिन्तु ॥ १०॥ शब्दार्थः--जो वायु की उदीरणा के निमित्त पंखा नहीं चलाता और न दूसरे से चलवाता है, जो वनस्पति को स्वयं नहीं छेदता और न दूसरे से छिदवाता है,तथा वीजों का सदैव त्याग करता हुआ जो सचित्त वस्तु का आहार नहीं करता, वही भिनु है। भाष्यः-तीन स्थावर कायों की यतना का निरूपण करके सुत्रकार ने शेप दो स्थावरकायों की यतना का यहां कथन किया है। - चतुर्थ स्थावर काय वायुकाय है । वायुकाय की हिंसा से बचने के लिए पंखा चलाना या दूसरे से पंखा चलवाना साधु के लिए सर्वथा त्याज्य है । ऐसा करने से
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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