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________________ श्री नियन्ध प्रवक्न विषयानुक्रम प्रथम अध्याय षद्रव्य निरूपण । ४ कर्म की व्यापकता ५ कर्म पौद्गलिक हैं १ निर्ग्रन्थ प्रवचन का अर्थ २ श्रात्मतत्त्व विचार ६ कर्मों के क्रम की उपपत्ति . ७ कर्मों का स्वरूप ३ श्रात्मसिद्धि ८ कर्मों की विभिन्न शक्तियां ४ आत्मा का कर्तृत्व ज्ञातावरण कर्म का निरूपण ५ कर्मफल का भोग १० दशनावरण कर्म का निरूपण ६ आत्मदमन और चिसशुद्धि ११ वेदनीय कर्म का निरूपण ७ श्रात्मा और शरीर की भिन्नता । १२ मोहनीय कर्म का निरूपण ८ श्रात्मदमन के साधन १३ मिथ्यात्व के दस भेद, श्रात्मदमन से लाभ १४ चारित्र मोह का निरूपण १० भौतिक युद्ध नौर आन्तरिक युद्ध २० १५ कषाय और प्रतिक्रमण ११ श्रात्मशुद्धि १६ कषायों का विवेचन १२ आत्मा और इन्द्रियों का संबंध १७ नोकषाय का अर्थ १३ श्रात्मा और शरीर १८ आयु कर्म का निरूपण १४ संसार-निस्तार १६ श्रायु का बंध १५ जीव के लक्षण २० नाम कर्म का निरूपण ९ १६ उपयोग का विशेष लक्षण २१ गोत्र कर्म का लक्षण १७ नव तत्त्व-विचार २२ गोत्र कर्म और अस्पृश्यता १८ लोक स्वरूप २३ अन्तराय कर्म का निरूपण १६ षद्रव्य निरूपण २४ कर्मप्रकृतियों के विभाग २० द्रव्य, गुण और पर्याय २५ कर्मों की स्थिति २१ द्रव्य विचार २६ सागरोपम का अर्थ २.१ स्याद्वाद २७ कमों के फल २३ पर्याय का स्वरूप २८ कर्म फलदाता है २४ लक्षण का लक्षण २६ फर्म अमोघ है , द्वितीय अध्याय-कर्म निरूपण । ३० का ही कर्म फल भोगता है १ कर्म शब्द की व्युत्पति ८०३१ परिग्रह साथ नहीं देता २ कर्म के भेद १ ३२ मोह कर्म का कारण ३ मूर्त का मूर्त के साथ संबंध ८२ । ३३ राग-द्वेष १०३ १०६. १०७ १०८ ११० १११ ११४ ११५ १२१ १२३ १२५ .
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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