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________________ नववां अध्याय [ ३२५ ) हैं। वनस्पति काय को भूत कहते हैं। पंचेन्द्रिय प्राणियों को जीव कहा गया है ! पृथ्वी, ऊप, तेज और वायु, काय के जीव सत्त्व कहलाते हैं । इस सूक्ष्म अर्थ भेद की, यहां विवक्षा नहीं की गई है अथवा जीव शब्द अलक्षण है और उससे प्राण, भूत और सस्व का भी ग्रहण करना चाहिए । इसी प्रकार 'प्राणीवध' शब्द के लिए सम. झना चाहिए। निर्ग्रन्थ मुनि त्रस और स्थावर-सभी जीवों की मन, वचन, काय से, स्वयं सा नहीं करते, दूसरों से नहीं कराते और हिंसक की अनुमोदन नहीं करते। वे जीवन-पर्यन्त के लिए इस महान् व्रत को अंगीकार करते हैं। अहिंसा संबंधी विवेचन पहले किया जा चुका है। अतएक यहां पुनः विस्तार नहीं किया जाता। मूलः-मुसावाश्रो य लोगम्मि, सव्वसाहहि गरिहियो। अविस्सासो य भूयाएं, तम्हा मोसं विवजए ॥२॥ छाया:-मृषावादश्च लोके, सर्वसाधुभिर्हितः। ___ अविश्वासश्च भूतानां, तस्मान्मृषां विवर्जयेत् ॥ २॥ शब्दार्थः-हिंसा के अतिरिक्त मृषावाद ( असत्य भाषण ) भी लोक में समस्त सत्पुरुषों द्वारा निन्दनीय है और मृषावाद से अन्य प्राणियों को अविश्वास होता है, इसलिए मृषावाद का भी निर्ग्रन्थ पूर्ण रूप से त्याग करें। भाष्य-अहिंसा महाव्रत का निरूपण करने के पश्चात् यहां द्वितीय सत्यमहाब्रत का उपदेश कियागया है। मूल में 'य' अव्यय पद पूर्वोक्त अहिंसा का समुच्यय करने के लिए है। उससे यह तात्पर्य निकलता है कि जैसे हिंसा लोक में सत्पुरुषों द्वारा निन्दनीय है, उसी प्रकार असत्य भाषण भी निन्दनीय है। असत्य भाषण अविश्वास का जनक भी है। अर्थात् जो व्यक्ति असत्य भाषण करता है उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करता । असत्य-भाषण शील व्यक्ति का सत्यभाषण भी अविश्वास के कारण असत्य ही समझा जाता है। असत्य भाषण की सत्पुरुषों ने निन्दा की है । प्रश्न व्याकरण सूत्र में कहा गया है: 'जो लोग गुण-गौरव से रहित तथा चपल होते हैं वे असत्य भाषण करते हैं । असत्य भाषण भयंकर है, दुःखकर है, अयशकर है, वैर-वर्धक है, राग-द्वेष और संक्लेश का जनक है, शुभ फल से शून्य है, मायाचार और अविश्वास को उत्पन्न करता है। नीच लोग इसका आचरण करते हैं। यह अप्रशस्त है। श्रेष्ठ साधु. जनों द्वारा निन्दनीय है। दूसरों को पीड़ा पहुंचाता है । परम कृष्णलेश्या से युक्त है। दुर्गति-गमन कराता है । पुनः पुनः जन्म-मरण उत्पन्न करता है, दारुण फल देने वाला है।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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