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________________ । १८६ । श्रात्म-शुद्धि के उपाय है। इसलिए धर्मरूपी सरोवर में प्रवेश करने के लिए 'शान्ति' तीर्थ की यात्रा करना .. चाहिए ! कहा भी है- . . . . . . .. कौटिल्ये वन्धभेदेच, तीर्थ शास्त्रावतारयोः। . . . . . . . ..पुण्यक्षेत्रमहापात्रोपायोपाध्यायदर्शने । . -विश्वलोचन कोश ... ... तात्पर्य यह है कि जहां शान्ति है. वहीं धर्म का वास होता है। इसीलिए यहां . धर्म-सरोवर को शान्ति रूप तीर्थ में होना कहा है। ........... .... . : महर्षि व्यास ने भी इसी प्रकार के स्नान का विधान किया है। वे कहते हैं--- ... ज्ञानपालीपरिक्षित, ब्रह्मचर्यदयाम्भलि: . . . . . . . . . . : ..स्नात्वाऽति विमले तीर्थे, पापपङ्कापहारिणि ॥ . . . . अर्थात् ज्ञान की पाल से चारों ओर घिरे हुए, निर्मल, पापरूपी कीचड़ को थो डालने वाले और ब्रह्मचर्य तथा दया रूपी पानी से भरे हुए तीर्थ में स्नान करना चाहिए। . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . यही प्राध्यात्मिक स्नान आत्म-शुद्धि का जनक है । यही संयमी पुरुषों के लिए उपादेय है। ..." - निर्ग्रन्थ-प्रवचन-चतुर्थ अध्याय... ... समाप्तम् S
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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