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________________ - [ १८२ ] .. अात्म-शुद्धि के उपाय, समझकर किया जाता है तो वह उतना भयावह नहीं होता, जितना धर्म की प्रोट में 'धर्म के नाम पर-धर्मशास्त्र के विधान के आधार पर किया जाने वाला पाप भयावह . होता है। यज्ञ करना शास्त्रविहिन कत्र्तव्य समझा जाता था अतएव उसकी भयंकरता जनता के खयाल में भी नहीं आती थी और बिना किसी झिझक के-बिना किसी संकोच के-हिंसा का दौर-दौरा चल रहा था। .. उस समय जो लोग धर्म के वास्तविक अहिंसात्मक स्वरूप के ज्ञाता थे, वे यज्ञ के विरुद्ध प्रचार अवश्य करते थे, फिर भी. याज्ञिक लोग 'वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति' अर्थात् जिस हिंसा का विधान वेद में किया गया है, वह हिंसा, हिंसा ही नहीं है, हिंसा तो सिर्फ वही कहला सकती है जिसकी आज्ञा वेद नहीं देता इस प्रकार कह कर उस घोर हिला को अहिंसा का जामा पहनाने का प्रयत्न करते थे। . भोली-भाली जनता अन्ध-श्रद्धा के.अतिरेक के कारण इस हिंसा के विरुद्ध . खुल्लम-खुल्ला विद्रोह नहीं करती थी। इसी कारणं याज्ञिक लोग विना किसी झिझक के हिलाकारी यज्ञा में लगे रहते थे। उन्होंने यज्ञ के संबंध में तरह-तरह के विधिविधानों की कल्पना की थी। वे यहां तक कहने से नहीं चूकते थे औषध्यः पशवो वृक्षास्तिर्यचःपक्षिणस्तथा। .. यज्ञार्थ निधनं प्राप्ताः, प्राप्नुवन्त्युच्छितं पुनः ॥ . अर्थात्:-औषधियां घास आदि ), पशु, वृक्ष, तिर्यञ्च और पक्षी, जो भी . कोई प्राणी यज्ञ के लिए प्राणं-त्याग करता है अर्थात् जिसकी यज्ञ में बलि दी जाती .. है वह स्वर्ग:प्राप्त करता है । . . , श्रमण भगवान महावीर ने इस हिंसाकारी यज्ञ के विरुद्ध जनता को उपदेश देकर वास्तविक धर्म की प्रतिष्ठा की। उन्होंने यज्ञ के भौतिक एवं भयंकर यज्ञ के चंदले आध्यात्मिक यज्ञ की प्रतिष्ठा की । वह यन्त्र क्या है, यही सूत्रकार ने इस गाथा में बताया है । सूत्रकार कहते हैं-तप रूपी अग्नि में, कर्म रूपी समिधाएँ झोंकना चाहिए । योग को कुड़छी बनाना चाहिए और शरीर को कंडा बनाना चाहिए। यही यज्ञ सच्चा यश है। लोकिक लाभों के लोलुप जो यज्ञ पशुओं को. आग में होमकर के . करते हैं, वह ऋपियों द्वारा प्रशंसित नहीं है । 'ऋषि तो इसी आध्यात्मिक यज्ञ की प्रशंसा करते हैं। इसी यज्ञ से, कर्मों का विनाश हो जाने के कारण आत्म-शुद्धि और परिणाम स्वरूप परम पद की प्राप्ति होती है। .हिंसा करने से कभी सदगति का लाभ नहीं हो सकता। हिंसा प्रत्येक अवस्था में हिंसा है । किसी भी शास्त्र का कोई. वाक्य हिंसा को अहिंसा के रूप में नहीं पलट सकता। . ... भगवान् के उपदेश से जनता ने अहिंसा की महिमा समझी और उसका व्यापक प्रभाव हुआ। फल स्वरूप वैदिक धर्म में भी अहिंसात्मक यज्ञ की प्रतिष्ठा होने लगी और हिंसात्मक यज्ञ के प्रति लोगों की आस्था घट गई । वैदिक महर्षि व्यास ने कहा
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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