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________________ कर्म निरूपण की अद्भुत और श्राश्चर्यजनक शक्तियां खोल कर संसार के समक्ष रख दी हैं, फिर भी जड़ पदार्थ में फल देने की शक्ति न स्वीकार करना दुगग्रह का चिह्न है । विविध प्रकार के गैस और भाफ जड़ होने पर भी तरह-तरह की शक्तियों से सम्पन्न हैं। इन्हें छोड़ दिया जाय और दैनिक व्यवहार की साधारण वस्तुओं को लिया जाय तो भी जड़ पदार्थों में अनेक फल देने वाली शक्तियां विद्यमान है, यह निश्चय हो जायगा। जड़ औषधियां रोग निवृत्ति रूप फल को उत्पन्न करती है, अञ्जन नेत्रों की ज्योति वढ़ाता है, और रोटी भी भूखजन्य क्लेश को नष्ट करके सुख उत्पन्न कर देने की शक्ति से युक्त है। ऐसी अवस्था में जड़ कर्म क्यों सुख-दुःख रूप फल नहीं दे सकते हैं। . अगर यह कहा जाय कि उक्त सब जड़ पदार्थ चेतन की सहायता बिना फल. नहीं देते हैं। रोटी को जब तक जीच खाता नहीं है तब तक वह साता रूप फल नहीं देती। अतएव जड़ कर्मों के द्वारा फल भोगने के लिए चेतन की सहायता चाहिए । सो इस शंका का समाधान पहले ही किया जा चुका है कि कर्म, जीव की सहायता से ही उसे फल देते हैं, क्योंकि संसारी जीव जो कर्मों से संयुक्त है। इसलिए कर्मा के अनुसार ही सुख-दुःख रूप फल मानना उचित है। ईश्वर के कर्तृत्य पर विस्तृत विचार आगे किया जायगा। सूलः-तेणे जहा संधिसुहे गहीए, सकम्सुणा किचइ पावकारी । एवं पयांपेच्च इहं च लोए, कडाण कम्माण ण मोक्ख अत्थि २२ छाया:-स्तेनो यथा सन्धिमुखे गृहीतः, स्वकर्मणा क्रियते पापकारी। एवं प्रज्ञा प्रेत्य इह च लोके, कृतानां कर्मणां न मोक्षोऽसि ॥ २२॥ शब्दार्थ:-जैसे पाप करने वाला चोर संधि-खात-के मुँह पर पकड़ा जाकर अपने . किय हुए कमाँ के द्वारा ही छेदा जाता है-दःख पाता है, उसी प्रकार प्रजा अर्थात् लोक परलोक में और इसलोक में दुःख पाते हैं। क्योंकि किये हुए कमाँ से बिना भोमे छुट- . कारा नहीं मिलता। आप्यः कमाँ का साधारण फल निरूपण करने के पश्चात कमो की अमोघता प्रदर्शित करने के लिए सूत्रकार ने यहाँ बताया है कि जैसे कोई चोर, चोरी करने के लिए दीवाल श्रादि में सात खोदता है और वह उसी स्थान पर यदि पकड़ा जाता हे. तो उसे नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं, उसी प्रकार जो लोग पाप-कर्म को उपार्जन करते हैं उन्हें भी नाना प्रकार के कष्ट उस पाप-कर्म की बदौलत भोगने पड़ते हैं। . जैसे चोर को चोरी का फल इसी जन्म में भेग लेना पड़ता है उसी प्रकार क्या समस्त पाप कमों का फल इसी जन्म में भोग लिया जाता है ? इस संदेह का निवारण करने के लिए सूत्रकार ने 'पंच' अर्थात परलोक का कथन किया है । अर्थात . किये हुए कमा का फल इस लोक में भी पीर पर लोश में भी भोगना पड़ता है । राजा सीर से चोरी का जो दगड मिलता है वह सामाजिक अपराध के रूप में होता है ।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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