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________________ [ १०४ ] कर्म निरूपण भेद, जाति के पांच भेद, शरीर के पांच भेद, अंगोपांग के तीन भेद, बंधन के पांच भद. संघात के पांच भेद, संहनन के छह भेद, संस्थान के छह भेद, वर्ण के पांच भेद, गंध के दो भेद. रस के पांच भेद, स्पर्श के आठ अद, आनुपूर्वी के चार भेद विहायोगति के दो भेद । इस प्रकार इनकी संख्या कुल पैंसठ है । इनमें पराघात श्रादि आगे की अहाईस प्रकृतियां सम्मिलित करने से नाम कर्म की तेरानवे प्रकृतियां हो जाती हैं । यह तेरानवें भेद सत्ता की अपेक्षा जानने चाहिए। प्रारंभ की चौदह प्रकृतियां अनेक भेद रूप होने के कारण पिंडकृतियां कहलाती हैं। उनके भेदों की संख्या अभी बतलाई गई है। भेदों के नाम इस प्रकार हैं: (१) गति नाम कर्म-जिस नाम कर्म के उदय से जीव देव, मनुष्य, तिर्थञ्च और नारक अवस्था प्राप्त करे वह गति नाम कर्म । उसके यही देवादि के भेद से - चार भेद हैं। (२) जाति नाम कर्म-जिस कर्म के उदय से जीव एकेन्द्रिय,द्वन्द्रिय,त्रीन्द्रिय, चौइन्द्रिय या पंचेन्द्रिय कहलावे, वह जाति नाम कर्म है। यही इसके भेद हैं। (३) शरीर नाम कर्म-जिसके उदय से जीव को शरीर की प्राप्ति हो । इसके । पांच भेद हैं-औदारिक शरीर नाम कर्म, वैक्रिय शरीर नाम कर्म, आहारक शरीर नाम कर्म, तेजस शरीर नाम कर्म और कार्मरण शरीर नाम कर्म । . . (४) अंगोपांग नाम कर्म-जिस कर्म के उदय से पुद्गल, अंगो और उपांगों के रूप में परिणत हों। इसके तीन भेद हैं-ौदारिक अंगोपांग नाम (२) वैक्रिय अंगोपांग नाम (३) श्राहारक- अंगोपांग नाम। (५) बंधन नाम कर्म-जिस कर्म के उदय से पहले ग्रहण किये हुए शरीरघुदगलों के साथ वर्तमान में ग्रहण किये जाने वाले पुदगलों का संबंध हो । इसके पांच भेद हैं-यांच शरीरों के नाम के ही अनुसार पांच भेद । (६) संघात नाम सर्म-जिसके उदय से शरीर के पुदगल व्यवस्थित रूप से स्थापित हो जावें । शरीर के भेदों के अनुसार ही संघात नामके भी पांच भेद होते हैं । ७) संहनन नाम कर्म-जिस कर्म के उदय से शरीर में हाड़ों का परस्पर में जोड़ होता है। इसके छह भेद हैं. वज्र-पभनाराच संहनन. ऋषभनाराच संहनन, नाराच संहनन, अर्धनाराच संहनन, कीलिक संहनन और से बात संहनन । (E) संस्थान नाम कर्म-जिस कर्म के उदय से शरीर का कोई प्राकार बने यह संस्थान नाम कर्म हैं । इसके छह भेद है--समचतुरत्न संस्थान ( पालथी मार कर बैठने से जिस शरीर के चारों कोने समान हों उस शरीर का आकार), न्यग्रोध परिमंडल संस्थान ! ऊपर के अवयव स्थूल और नीचे के अवयव अत्यन्त हीन-बढ़ के वृक्ष के समान शरीर का प्राकार ) लादिसंस्थान ( न्यग्रोध परिमंडल से विपरीत प्राकार) कुब्जक संस्थान (कुबड़ा श्राकार ) वामन संस्थान ( बौना श्राकार ) हुंडक संस्थान (बेढंगा शरीर का बाजार ) यह साकार जिल कर्मक उच्य से होते हैं उस
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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