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________________ - [. ६८ - षट् द्रव्य निरूपण .. ... पर्याय हमारे अनुभव में श्राती है और वह त्रिकाल स्पर्शी है अर्थात् जो मनुष्य वर्त्त-- मान है वह कल भूतकाल में भी मनुष्य था और आगामी काल-भविष्य काल में भी मनुष्य रहेगा। अतएव जीव द्रव्य की मनुष्य को व्यंजन पर्याय कहा गया है। व्यंजन पर्याय दो प्रकार की होती है-स्वभाव व्यञ्जन पर्याय और विभाव व्यञ्जन पर्याय । जो व्यंजन पर्याय त्रिकालस्पर्शी हो किन्तु किसी अन्य कारण ( कर्म श्रादि ) से उत्पन्न न होकर स्वाभाविक हो उसे स्वभाव व्यंजन पर्याय कहते हैं। जैसे जीव की सिद्ध पर्याय। इसके विपरीत जो व्यंजन पर्याय कर्म श्रादि किसी वाह्य निमित्त से होती है वह विभाव व्यंजन पर्याय है । जैसे जीव की मनुष्य पर्याय, देव पर्याय, तियञ्च आदि। यह पर्याय कर्म के उदय से होती है, जीव का स्वभाव देव आदि होना नहीं है । अतः यह पर्याय विभाव व्यंजन पर्यायें हैं । जो पर्याय सिर्फ वर्तमान कालवती ही होती है, जिसके बदल जाने पर भी द्रव्य आकार नहीं बदलता और जो अत्यन्त सूक्ष्म होती है उसे अर्थ पर्याय कहते हैं। इसके भी स्वभाव अर्थ पर्याय और विभाव अर्थ पर्याय के भेद से दो भेद होते हैं। . . पहले द्रव्य को अनन्त गुणों का अखंड पिंड कह चुके हैं। अतएव जव गुणों में विकार होता है तब द्रव्य में भी विकार होना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त कभी सम्पूर्ण गुणों के पिंड रूप समूचे द्रव्य में भी परिवर्तन होता है । यह दोनों प्रकार का परिवर्तन द्रव्य में होता है । द्रव्य में अन्यान्य गुणों के समान एक प्रदेशवत्व गुण भी होता है । उस का अभिप्राय यह है कि द्रव्य किसी न किसी छाकर में अवश्य रहता है। उस प्रदेशवत्व गुण के विकार को अर्थात् द्रव्य के श्राकार में होने वाले परिवर्तन को व्यंजन पर्याय या द्रव्य पर्याय कहते हैं और प्रदेशवत्व गुण के सिवाय अन्य गुणों के विकार को अर्थ पर्याय या गुण पर्याय कहते हैं। सूत्रकार ने पर्यायों को उभयाश्रित द्रव्य और गुण में रहने वाली निरूपण किया है, उसका यही आशय है। . श्रतएव पूर्वोक्त स्वभाव-विभाग व्यंजन पर्याय नादि के दो दो भेद किये जा सकते हैं। जैस-स्वभाव द्रव्य व्यंजन पर्याय और स्वभाव गुण व्यंजन पर्याय विभाव गुण व्यंजन पर्याय। स्वभाव द्रव्य व्यंजन पर्याय-जैसे चरम शरीर से कुछ कम सिद्ध भगवान् की पर्याय । __स्वभाव गुण व्यंजन पर्याय--जैसे जीव की अनंत ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य । पर्याय । विभाव गव्य व्यंजन पर्याय--जैले जीव की देव, मनुष्य आदि चौरासी लान योनिरूप पर्याय। विभाग गुण व्यंजन पर्याय--जैसे जीव की मतिज्ञान, शुतज्ञ न, अवधिज्ञान, . मनःपर्याय म्हान, चक्षुदर्शन, आदि पर्याय . . इसी प्रकार पुल द्रष्य का अविभागी एरसाशु पुल का खभाव द्रव्य- व्यंजन
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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