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________________ द्वितीय परिच्छेद, ( ए३) जे ते आचार्य, तथा (2) जेनी पासे आवीने अध्ययन करीयें ते उपाध्याय तथा (३) तप जे करे ते तपस्वी तथा (४) जेणें नवुं साधुपएं अंगीकार कर्य होय ते शिष्य. तथा (५) ज्वरादि रोगवाला जे साधु ते ग्लान. तथा (६) धर्मथी गगनारने स्थिर करे ते स्थविर तथा ( 9 ) जे साधुनी पोताना सरखी समाचारी होय ते समनो. तथा (G) साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका ए चारेनो जे समुदाय ते संघ तथा (ए) बहु एक सरखा गोना, सजातिर्जना जे समूह ते कुल, चंद्रादि तथा (१०) एक आचार्यनी वाचना वाला साधुर्जना समूह ते गए, गछ, कौटिकादि. पूर्वोक्त आचार्यादि दशेने अन्न, पाणी, वस्त्र, पात्र, मकान, ( १ ) पीव, (२) फलके, ( ३ ) संस्तारंक प्रमुख धर्म साधनोथी जे साहाय्य करवुं, शुश्रूषा करवी, तथा जंगलमां रोग उत्पन्न थवायी औषध करवां, तथा नाना प्रकारना उपसर्गोथी पालना करवी तेनुं नाम वैय्यावृत्त बे. a हवे जे शीलवान् साधु नव वाडसहित शील पाले तेने नवविध ब्रह्मचर्यनीतिक बे. ते लखियें बियें. यतः ॥ वसहि कह निसि - बिंदिय, कुरूंतर पुबकी लिय पणीए ॥ अश्मायाहार विनू, सणा नव बंज गुत्तीर्थं ॥ १ ॥ अर्थः- १ ( वसहि ) वस्ति - जे ब्रह्मचारी साधु होंय ते स्त्री, पशु, पंकसंयुक्त जे वस्ति होय त्यां न रहे. तेमां प्रथम स्त्री, बे प्रकारनी बे, एक देवी, बीजी " मानुषी" मनुष्यणी; ते बनेना बेबे द बे, एक असल, बीजी तेनी मूर्त्ति के चित्रामनी मूर्त्ति. या बने प्रकारनी स्त्री न होय ते वस्तीमां रहे. तथा पशु जे तिर्यंचणी, गाय, कुतरी, पाडी, घोडी, बकरी, घेटी प्रमुख जे वस्तिमां नहि रहेती होय. त्यां रहे. तथा पंडक, नपुंसक, त्रीजा वेदवाला, अत्यंत मोहमय काम करनारा, स्त्री ने पुरुष बनेनी साथे विषय सेवनारा, जे वस्तिमां रेदेता होय त्यां ब्रह्मचारी न रहे. कारण के या त्रणे संयुक्त वस्तिमां रे तां थकां तेनी काम विकारनी चेष्टा देखवाथी, ब्रह्मचारीना मनमां विकार उत्पन्न वाथी ब्रह्मचर्यने बाधा थाय बे. जेम जंदर तेमज बिलाडी : एक जगामां रहे तो नंदरने सुख नहि, तेमज आत्रणे संयुक्त वस्तिमां : रेहेवाथी शीलवान्ने शियलमां उपद्रव थाय. श्रा प्रथम ब्रह्मचर्य सि. १ पाटला, २ पाटियुं. ३ संथाराआदि. "
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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