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________________ वितीय परिवेद. (४३) ___ उत्तरपद- जो ईश्वर स्मृष्टिना का प्रत्यक्ष प्रमाणथी सिद्ध थाय तो कोश्ने पण अमान्य न होय, अने तमारो अमारो ईश्वरविषयी विवाद पण कदी न होय, कारण के प्रत्यक्षमा विवाद होतोज नथी. परंतु ईश्वरनुं प्रत्यक्ष दर्शन तो श्रापना वेदमंत्रथी विरुफ बे. वेदमंत्र. अपाणिपादो जवनो ग्रहीता, पश्यत्यचकुस्सशृणोत्यकर्णः ॥ सवेति विश्वं नच तस्यास्ति वेत्ता, तमाहुरत्र्यं पुरुषं पुराणम् ॥ श्रआ मंत्रथी साबीत थायडे के ईश्वरने जाणनार को नहि. पूर्वपद-कर्ता विना जगत् केम थर गयुं ? श्रा अनुमान प्रमाणथी ईश्वर सृष्टिकर्ता सिद्ध थाय बे, ते आप केम नथी मानता ? __ उत्तरपद-श्रा आपना अनुमाननुं बीजा ईश्वरपदमां खंडन करवामां आवशे. उपर बतावेला प्रकारथी एक केवल उपादानादि सामग्री रहित, सृष्टिनी पेहेलां ईश्वर सिझन थया तो पण अमे आगल चलावियें लियें. ज्यारे ईश्वरें आ जीवोने रच्या हता त्यारे १ निर्मल रच्या हता ? ५ पुण्यवाला रच्या हता ? ३ पापवाला रच्या हता? ४ मिश्रित पुण्यपाप अ| अर्धवाला रच्या इता ? ५ पुण्य अल्प पाप अधिक एवा रच्या हता ? ६ किंवा पुण्य अधिक पाप अल्प एवा रच्या हता ? जो प्रथम पद ग्रहण करशो तो जगत्मां सर्व जीव निर्मलज होवा जोश्ये, पठी वेदादि शास्त्रद्वारा तेउँने उपदेश करवो वृथा बे. तेमज वेदादि शास्त्रोना कर्त्ता पण मूढ सिझ थशे. कारण के जो प्रथमश्रीज जीव निर्मल तो तेउँने माटे शास्त्र शा माटे रच्यां ? जे वस्त्र निर्मल होय छेतेने कोश्पण बुधिमान् धोता नथी. जो कदापि धोवे तो ते महामूढ . श्रा कारणथी जे निर्मल जीवोना उपदेश निमित्त शास्त्र रचे ते पण मूढ . १. पूर्वपद-ईश्वरें तो जीवोने शुद्ध निर्मल अर्थात् सारा बनाव्या हता, परंतु जीवोए पोतानी श्वाथी सारां अथवा चूंडां कामो करी लीधांडे, तेमां ईश्वरनो का दोष नहि. उत्तरपदा-जो ईश्वरें जीवोमां सारां अथवा बुरां काम करवानी शक्ति रची न होती तो पड़ी जीवोमां पुण्य श्रथवा पाप करवानी शक्ति क्यांची श्रावी? पूर्वपद-शक्तियो तो जीवमां सर्व ईश्वरेंज रची ने, परंतु जीवोने बुरां
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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