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________________ दश परिच्छेद. (uuu) खिल्या विनाना कमल समान कुमारी कन्या बे, जे तमने जोग करवावास्ते वल बे, अने हुं तो खिलेला फूल समान ढुं. महेश्वरे कयुं के तुं पण मने अति वल्ल बो. ए प्रमाणे वार्तालाप करी बन्ने जपार्ट विषयमां श्रासक्त थयां महेश्वर उमाना दावजावची तेनेज घेर रहेवा लाग्यो. उमाये महेश्वरने पोताने श्रधीन करी लीधो, जेथी उमानुं वचन महेश्वर उल्लंघन करी शकतो नहोतो. ए प्रमाणे केटलोएक काल व्यतीत थयो, त्यारे चंद्रप्रद्योते उमाने बोलावी बहुज श्रादर सत्कार तथा धन आप के तुं महेश्वरने या वात पुछ ? के एवो कोइ समय बे, के जे वखते तमारी पासे कां पण विद्या रहेती नथी ? उमाये युक्तिपूर्वक पूढी कदेवानुं वचन श्रायुं. हवे उमाये महेश्वरने पुब्धुं हे स्वामि । मने एक जातनी बहुज बीक बे. आपनी विद्या को वखते जती रहे बे के केम? तेनो खुलासा करो, जेथी मने निरांत थाय. महेश्वरे कथं हे वने ! तुं विचार कर नहि. मारी विद्या जती नथी. मात्र ज्यारे हुं मैथुन सेवन करुं हुं, त्यारे मारी पासे कां पण विद्या रहेती नथी, अर्थात् ते वखते मारी विद्या चालती नथी. हवे जमाये महेश्वरनी सर्व बिना चंद्रप्रद्योतने कही दीधी, जेथी चंद्रप्रद्योते उमाने कयुं के मारो महेश्वरने मारवानो विचार बे, जेथी तारी साथे ते जोग जोगवतो होय, धने तेने माये एवी गोठवण कर. उमाये कनुं के मने मारवी नहि. राजाये क के बहु सारं. पी युक्ति प्रमाणे चंद्रप्रद्योते उमाना घरमा सुनटोने गुप्त राख्या. ज्यारे महेश्वर उमानी साथे विषय सेवनमां मन घर बनेना शरीरो परस्पर एक शरीरवत् थ‍ गयां, त्यारे राजाना सुनटोये बनेने कापी नांख्या, अने नगरनो उपद्रव दूर कयों. दवे महेश्वरनी सर्वे विद्याये महेश्वरना शिष्य नंदीश्वरने पोतानो अधिष्ठाता बनाव्यो. ज्यारे नंदीश्वरे पोताना गुरुने उपर मुजब विटंबनाथी मार्यानी वात सांजली, त्यारे विद्यार्थी उजयनी उपर शिला विकुर्वी; छाने कड़ेवा लाग्यो के दे मारा दासो ! हवे तमे क्यां जशो ? हुं सर्वने चूर्ण करी नाखुं खुं हुं सर्व शक्तिमान् इश्वर बुं. कोइनो मार्यो मरतो नथी. हुं सदा अविनाशी ढुं. या यानक वचनोथी लोको बहुज डरवा लाग्या, सर्वे लोको विनंति करी पगे पडवा लाग्या, तथा सर्वेये कयुं के श्रमारा अपराध क्षमा करो. नंदी
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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