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________________ एकादश परिजेद. (पश्य) एकदा प्रस्तावे हुँ ( नारद ) सूक्तिमती नगरीमा गयो. पर्वतने धेर जतां ते पोताना शिष्योने रूग्वेद नणावतो हतो, अने तेनो अर्थ पण शिखवतो हतो. प्रसंगे एवी श्रुति रूग्वेदमां आवी के "अजैर्यष्टव्यमिति” पर्वते आ श्रुतिनो एवो अर्थ कयों के श्रज अर्थात् बकराथी होम करवो, सारांश के बकरांने मारी तेना मांसनो होम यज्ञमां करवो. ते सांजली में पर्वतने कडं हे ना! था प्रमाणे व्याख्या कर ब्रांतिथी करे ले ? गुरुश्रीदीरकदंबकजीए आ श्रुतिनी श्रावी व्याख्या करी नथी, गुरूजीए तो आ श्रुतिमां अज शब्दनो अर्थ त्रण वर्षतुं जुर्नु धान्य करेलो बे; " न जायत इत्यजा” जे वाववाथी न उत्पन्न थाय ते अजा, आवो अर्थ श्रीगुरुजीए तमने तथा मने शिखाव्यो हतो, ते अर्थ तमे केम जूली जाउं बो ? पर्वते कडं के तमे जे अर्थ करोबो ते अर्थ गुरुजीए को नश्री, परंतु हुँ जे अर्थ करूं बुं, तेम अर्थ गुरुजीए कयों हतो, कारण के निघंटमां पण अजा नाम बकरीनुंज लखेवं . पड़ी में (नारदे) पर्वतने कडं के शब्दोना अर्थ बे प्रकारे थाय बे, एक मुख्यार्थ, बीजो गौणार्थ. श्रा स्थले श्री गुरुए गौणार्थ कयों हतो. गुरु धर्मोपदेष्टानुं वचन अने श्रुतिनो यथार्थ अर्थ, बंने अन्यथा करी हे मित्र! तुं महापाप उपार्जन करे . फरी पर्वते कडं के अज शब्दनो अर्थ गुरुजीए मेष करेलो बे, निघंटमां पण एज अर्थ बे, तेने नवंघन करी तुं अधर्म उपार्जन करे बे; वली श्रा बाबत निर्णय करवो होय तो वसुराजा जे आपणा सहाध्यायी ने, तेने मध्यस्थ राखी आ श्रुतिना अर्थनो निर्णय करीए, परंतु सरत एटली के जेनो अर्थ जूगे ठरे तेनी जीहा. दवी. या प्रमाणे प्रतिज्ञा ठरी. में पण पर्वतनी सरत मान्य करी, एवा विचारथी के साचने शुंआंच ने ? पर्वतनी माताए ते वखते पर्वतने गुतरीते कडं के हे पुत्र! तुं आवो जूगे कदाग्रह बोडीदे, कारण के में पण ते श्रुतिनो अर्थ त्रण वर्षतुं धान्यज सांजल्यो , माटे ते जे जीता बेदनी प्रतिज्ञा करी ते वास्तविक कर्यु नथी. विचार कर्या विना जे काम करवामां आवे जे, तेथी आपत्तिमां आवी पडवानो प्रसंग थावे . ते सांजली पर्वते कडं के हे माताजी ! जे में प्रतिज्ञा करी ते को पण रीते हुं फेरवी शकुं तेम नथी. पड़ी पर्वतनी माता पोताना पुत्रनुं दुःख
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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