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________________ दशम परिवेद. . (५०५) गर्नमां पुत्रपणे उत्पन्न थयो. मरुदेवीये चौद खप्नो दीगं. महाराजे खप्न फल कह्यां. चैत्र वद आउमने दिवसे श्रीरीषनदेवजीनो जन्म थयो. बप्पन दिशाकुमारी तथा चोसठ इंजोये मली जन्म महोत्सव कों. मरुदेवीये चौद स्वप्नमां प्रथम वृषजनुं स्वप्न दीवु, तथा पुत्रना बंने साथलोमां वृदननु चिन्ह हतुं, ते कारणथी पुत्रनुं नाम रीषन पाड्यु.। बाल्यावस्थामा श्रीरीषनदेवजीने ज्यारे नूख लागती हती, त्यारे पोताना हाथनो अंगुगे मुखमां लश् चूसता हता. ते अंगुगमा इंजे अमृतनो संचार कयों हतो. ज्यारे रीषनदेवजी मोटा थया त्यारे देवता तेमने कल्पवृदाना फल लावी आपता हता. ज्यारे रीषजदेवजी काश्क न्यून वर्षना थया, त्यारे इंड तेमनी पासे श्राव्या, हाथमा कुदंड लाव्या, रिक्त हाथे स्वामि समीप जवु उचित नथी ते कारणथी गुदंड लाव्या. श्रीरीषजदेवजी ते वखते नाभिकुल करना खोलामा बेग हता. श्री. रीषनदेवजीनी दृष्टि श्खदंड उपर पडी; इंझे कडं जगवन्! आप कुनक्षण करशो? रीषनदेवजीये हाथ पसार्यो. ईश श्वदंड थाप्यो; त्यारथी छे रीषजदेवजीनो श्वाकु वंश स्थापन कयों; अने श्रीरीषनदेवजीना वंशवालाये काशकार पीधो, तेथी गोत्रनुं नाम काश्यप थयु. श्रीरीषनदेवजीना जेजे वयमा जेजे कामो उचित हतां, तेते सर्व शक इंडे काँ. जेजे शक्रसो थाय ने तेऊनो अनादि कालथी आ जीतकल्प बे, के प्रथम जगवानना वयोचित सर्व काम करवां. ते अवसरे एक बोकरो अने एक बोकरी, बेहेननाश् बाल्यावस्थामां ताडवृदनी नीचे रमता हता. ते समये ताडनुं फल पडवाथी बोकरो मरी गयो. नाजिकुलकरे ते समये विचार कर्यों के आगेकरी रीषजदेवनी जार्या थशे एम निश्चय करी पोतानी पासे राखी. तेनुं नाम सुनंदा हतुं. बीजी जे रीषजदेवजीनी साथे जन्मी हती, तेनुं नाम सुमंगला हतुं. ते बंनेनी साथे रीषनदेव बाल्यावस्थामा रमता हता, अनुक्रमे यौवन प्राप्त थये इंजे विवाहनो प्रारंज को. पूर्वे युगल समयमा विवाह विधि नहोतो, ते कारणथी आ विवाहमा पुरुषनां कृत्यो तो सर्व इंजे कर्यां, अने स्त्रीना कृत्य सर्व इंशाणीये काँ, त्यारथी विवाह विधि जगतमां प्रचलित थश्. श्रीरीषजदेवजीने बंने नार्याउनी साथे सांसारिक विषयसु
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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