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________________ एकादश परिछेद. (५०३) बदले वृदोनी बाल तथा पांदडां पेहेरता, उढता हता. इत्यादि सर्व बा - बतनुं प्रथम श्रारानुं स्वरूप जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति प्रमुख शास्त्रोथी जावं. art सुषमण कोटाकोटी सागरोपम, तेमां बे गाउ (कोश) नुं देहमान, बे पढ्योपमनुं श्रायुष्य, एकसो थहावीश पृष्ठकरं रुकनां हाड हृतां. शेष व्यवहार प्रथम धारा जेम हतो. त्री जो आरो सुषमडुषम; बे कोटाकोटी सागरोपम प्रमाण एक गाउ देहमान, एक पल्योपम श्रायुष्य, चोसठ पृष्ठकरंडक हाड इतां. शेष व्यवहार प्रथम धारा प्रमाणे हतो. या सर्व आरामां सर्व वस्तु अनुक्रमे घटती बेवढे श्रगलना श्रारा तुल्य रहे बे, परंतु एक साथे सर्व वस्तु एकदम घटती नथी. ए प्रमाणे त्रीजा श्राराने बेडे एक वंशमां सात कुलकर उत्पन्न थया. जेए ते कालना मनुष्यो वास्ते कांइक मर्यादा बांधी होय ते कुलकर कदेवाय बे. तेज सात कुलकरोने लौकिकमां सप्त मनु कहे बे. बीजा वंशोना कुलकर गणीयें तो श्री रुषनदेवजी शिवाय चौद कुलकर थाय बे, ने श्रीकृषनदेवजी पंदरमां कुलकर गणाय बे. पूर्वोक्त सात कुलकरोना नाम. १ विमल वाहन, १ चक्षुष्मान्, ३ यशखान्, ४ निचंद्र, ए प्रश्रेणि, ६ मरुदेव, ७ नानि. या सातेनी नार्यानाम अनुक्रमे प्रमाणे. १ चंद्रयशा, २ चंद्रकान्ता, ३ सुरुपा, ४ प्रतिरूपा, ९ चक्षुः कान्ता, ६ श्रीकान्ता, ७ मरुदेवी. या सर्व कुलकर गंगा सिंधु नदीना मध्य खंडमां थया बे. या कुलकर यवानुं कारण एवं बे के, त्रीजो खरो उत्तरतां, दश जातिना कल्प वृको कालना दोषथी अल्प थइ गया, तेथी युगलीयाए पोतपोताना वृद्धोपर ममत्व कर्यो. ज्यारे बीजा युगलीचाए राखेला वृक्षोथी फल लेवा लाग्या, त्यारे ममत्ववाला युगलो तेर्जनी साथे क्लेश करवा लाग्या, युगली या पुरुषोने वो विचार थयो के मारा क्लेशनो निवेडो लावे तेवो को पुरुष थाय तो सारुं; तेवामां ते युगली धार्ड मध्येथी एक युगलने वनना एक श्वेतहाथीए प्रेमची पोताना स्कंध उपर चडाव्यो. ज्यारे ते युगल पुरुष एकलो हाथी उपर चढी फरवा लाग्यो, त्यारे बीजा युगलो विचार करवा
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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