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________________ (४७) जैनतत्त्वादर्श. ती, नव निधान, यज्ञस्तंन, लक्ष्मी देवि, कलश, वर्षमान, चौद खप्नावति, श्रा चित्रो शुज बे. __ खजूर, दाडम, केला, कोहलां, बीजोरां, जे घरमां उगे ते घरनो नाश थाय . वडवृद उगे तो लक्ष्मीनो नाश करे, कांटा वाला वृद उगे तो शत्रुनो लय करे, मोटा फलवाला वृक्ष उगे तो संताननो नाश करे, था वृदना काष्ठ पण वर्जे. कोश् शास्त्र एम पण कहे के, घरनी पूर्वे वडवृक्ष होय तो सारंडे, दक्षिण बाजुये उंबर वृक्ष शुज , पश्चिम पासे पीपल वृद अने उत्तर पासे प्लीक्षण वृद सारा ने. घरमा पूर्वदिशिये लक्ष्मीनुं घर करे, अग्नि खुणमां रसोश करे, दक्षिण दिशिये शयननी जगा करे, नैरुत खुणमां शस्त्रशाला करे, पश्चिमदिशिये नोजन क्रिया करे, वायु खुणमां अन्न संग्रह करे, उत्तर बाजुये पाणीश्रारं करे, इशान खुणमां देव गृह करे, दक्षिण पासे अग्नि, पाणी, गाय, वायु, अने दीवानी नूमिका बनावे, वामी बाजुये नोजन धान्य अव्य, वाहन, श्रने देवतानी नूमि बनावे; था पूर्वादि दिशा घरना दरवाजानी अपेदाये जाणवी, बींकवत्, सूर्य अपेक्षाये नहि. घर बनावनार सुथार, कडीश्रा, मजूरने करारथी अधिक मजूरी थापे, तेमां शोना समजवी. गृहस्थने योग्य घर बनावे, परंतु व्यर्थ मोटुं घरन बनावे, कारण के तेम करवायी व्यर्थ धन खरचाय . घरना छारो मर्यादा पूर्वक राखे. बहु धार बनावे नहि. अधिक घारथी, पुष्ट जनोना.प्र. वेशनी जय तथा स्त्री अने धननो तेथी नाश थायजे. दरवाजाना बारणां मजबुत बनावे, सांकल, बागलीपाथी सुरक्षित करे. कमाड पण सुखे खुले तेवा बनावे. नीतमा चुंगल राखवाथी पंचेंजिय जीवनी विराधना थायजे. कमाड वासे त्यारे यत्नाथी वासे; तेवीज रीते यत्नाथी उघाडे, परनाल, खाल विगेरे उचित बनावे. या प्रमाणे देश, काल, खवैजव उचित, खजाति उचित, घर बनावी, विधि सहित, स्नात्रपूजा, साधर्मीवात्सव्य, संघपूजा करी, शुज मुहूर्ते, शुन शुकने, प्रवेश करे तो सुखी थाय, त्रिवर्गनी सिझिना हेतु थाय. इति प्रथम कार. २ बीजं विद्याधार कहीये बीये. विद्या ते लखवं, जण, वाणिज्यादि कलानुं ग्रहण करवू, अर्थात् अध्ययन करवं. जे विद्यान्यास करता नथी, ते मूर्ख रहे, अने पगले
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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