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________________ दशम परिजेद. (धन्य) दृढप्रहारी प्रमुख तेज जवमा मोद केम प्राप्त करत १ ते कारणथी दर वर्षे चोमासामा तो अवश्य थालोयणा ले. हवे जन्मकृत्य अढार छारोथी लखीये बीये. १ प्रथम उचित छार. उचित अर्थात् योग्य वास करवातुं प्रथम स्थान करे; ज्यां रहेवाथी धर्म, अर्थ, काम एत्रणेनी सिद्धि थाय.बीजे स्थले वसवाथी बंने नव बगडी जायजे. जिसपनीमां, चोरोना गाममां, पर्वतनी तलेटीमां, हिंसक लोकोमां उष्ट लोकोमा, धर्मीलोकोनी निंदा करनाराऊमां, इत्यादि स्थानमा वास न करे, ज्यां जिनचैत्य होय,मुनिनु आवागमन होय, श्रावक वसताहोय, बुद्धिमान् लोको खनावेज शीलवान् होय, प्रजा धर्मशील होय, अने ज्यां बहु जल, इंधन, धान्यादि होय त्यां वास करे. जेम अजमेरनीपासे हर्षपुर नगर हतुं, एवा नगरमा रहेवाथी, धनवंत, गुणवंत अने धर्मवंतनी संगतिथी विनय, विचार, आचार, उदारता, गंजीरता, धैर्यता, प्रतिष्टा श्रादि गुणोनी प्राप्ति थायजे. धर्मकृत्यमा कुशलता थायडे, ते कारपथी कनिष्ठ गामोमा धनप्राप्ति होय तोपण वास न करे, यतः॥ यदिवांबसि मूर्खत्वं, ग्रामे वस दिनत्रयं ॥ अपूर्वस्यागमो नास्ति, पूर्वाधीतंच नश्यति ॥ १॥ __ उचितस्थान पण स्वचक्र, परचक्र, परस्पर विरोध, उर्जिदा, मारी, प्रजाविरोध, अन्नादि वस्तुक्षय, इत्यादि कारणो प्रसंगे तत्काल तजी देवू जोश्ये; नहि तो त्रिवर्गनी हानि थ जायजे. जेम पूर्वे मुसलमानना जयथी लोको दिल्हीनो त्याग करी गुजरात प्रमुख देशोमां जवाथी सुखी अने धनवान थया; तथा जेम दितिप्रतिष्ठित शेहेर उजाड थवाथी चंपा नगरी वसी, अने चंपा उजाड थवाथी पाटलीपुत्र अर्थात् पटना वस्युं, तेम श्रावक पण पूर्वोक्त हानि जाणे तो नगर बोडीने बीजी जगाये जश् वास करे, रदेवाचें घर पण सारा लोकोनी पडोशमां करे, परंतु वेश्या तिर्यंच, निदाचर, श्रमण, बौद्ध, तापस, ब्राह्मण, कोटवाल, माजी, जुगारी, चोर, नट, जाट, कुकर्मी प्रमुखना पडोसमां घर वा उकान न करे. जो देरानी पासे रहे तो हानि थाय. चोकमां, धूताराना वासमां अने प्रधानना पडोसमां रहे तो धन अने पुत्रनी हानि थाय. मूर्ख, अधर्मी, पाखंडी, पतित,
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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