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________________ नवम परिछेद. (४५) सहित बहारथी ज्यारे जाश्ने देखे त्यारे तेना अंतःकरणमां पण ते बहु राजी थाय एवो देखाव बतावे. ज्यारे नाश् विनयमार्गमां आवी जाय त्यारे निष्कपटपणे मीगं वचनोथी तेनी साथे निरंतर वर्ते. कदाचित् नाश् अविनीतपणुं न तजे तो, चित्तमां विचारे के, तेनी प्रकृतिज एवी बे, एम मनमां समाधान करी उदासीनपणे वर्ते. वली जाश्नी स्त्री तथा तेना पुत्रोनी साथे समदृष्टि सर्व कार्यमा राखे. उरमान नाश्नी साथे विशेषरीतें प्रेमपूर्वक प्रवर्ते, कारण के तेनी साथे लेशमात्र अंतर राखवाथी अप्रतीति थ जाय , श्रने लोकमां पण निंदा थाय . तेवीजरीतें माता, पिता अने बंधुसमान बीजा जे जे पुरुषो , तेउनी साथे उचित आचरणो विचारी लेवां. यतः॥ जनकश्चोपकर्ताच, यस्तु विद्यां प्रयति ॥ अन्नदःप्राणदश्चैव, पंचैते पितरः स्मृताः॥१॥ राजपत्नी गुरोः पत्नी, पत्नीमाता तथैव च ॥ खमाता चोपमाता च, पंचतामातरःस्मृताः॥२॥ सहोदरः सहाध्यायी, मित्रं वा रोगपालकः॥ मार्गे वाक्य सखायश्च, पंचते जातरः स्मृताः॥३॥ वली पोताना नाजने धर्मकार्यमां पण प्रवावे; तेवीज रीतें मित्रनी साथे पण उचित आचरण करे. ४ हवे स्त्रीनी साथे उचित आचरण कहीए बीए. विवाहित स्त्रीनी साथे स्नेहसंयुक्त वचन व्यापार राखे, स्त्रीने सर्वकार्यमां अनिमुख करे, वखन अने स्नेहयुक्त वाणीविलास निश्चयपूर्वक प्रेमर्नु जीवन डे. स्नानप्रसंगें वा परिश्रमने प्रसंगें पगचंपी प्रमुख कार्यमा स्त्रीने प्रव वे. उत्तरोत्तर कार्यमा पतिनो स्नेह पत्नीना अंतरंगमा प्रवर्ते , त्यारे पत्नी कदापि उराचरण करवानी अभिलाषा करती नथी. देश, काल, समृधिपूर्वक स्त्रीने उचित वस्त्राचरणथी श्रलंकृत करे; कारण के अलंकारसंयुक्त स्त्री, लक्ष्मीनी वृद्धि करे . रात्रिए स्त्रीने बहारगमन करवा अनुज्ञा आपे नहि. वली कुशील, पाखंडी, जगत योगी इत्यादि नीचपुरुषोनी संगतमा प्रवर्तवा दे नहि. गृहकार्यमा स्त्रीने. निरंतर जोडी राखे. राजमार्गे उनां रहेता तथा वेश्याना पाडामां जतां निवारे. प्रतिक्रमण, सामायिक, देवदर्शनादि धर्मकृत्यो करवावास्ते, जिनमंदिर वा उपाश्रये जवामां, माता, बेहेन प्रमुख सुशील स्त्रीउनी संगतिमा जवानी अनुज्ञा आपे, घरना काम, दान, सगासंबंधीनां सन्मान, रसोश्नां
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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