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________________ ( ४३२ ) जैनतत्त्वादर्श. पाठ कड़े ॥ गाथा ॥ जामितो सुरा, सुरिहिंतुहनाद मंगल पईयो || कण्याय लस्स नजर, जाणुव पयादिणं दितो ॥ १ ॥ ए प्रमाणे मंगलदीव उतारी देदीप्यमान जिनराजना चरण कमलपासे राखे चार ति बुजावी देवामां दोष नथी. आरति अने मंगलदीवो मुख्य वृत्तिए, घी, साकर, कर्पूरादिथी करे. तेम करवाथी विशेष फल बे. " मुक्तालंका र " इत्यादि जे गाथा कही ते श्रीहरिजद्र सूरिजीनी करेली मालम पडे बे; कारण के श्रीहरिजप्रसूरिकृत समरादित्य चरित्रनामा ग्रंथनी श्रादिमां " उवणेन मंगलेवो ” एवो पाठ डे ॥ इति नमस्कारस्य दर्शनात् ॥ वली श्र गाथा तपगछमां प्रसिद्ध बे. ते कारणथी सर्व गाथा यहीं लखी नथी. स्नात्रादिमां समाचारी विशेषथी विविधप्रकारनो विधि देखवाथी व्यामोह न करवो; कारण के सर्व आचार्यानी अद्नक्तिरूप फलनी सिशिवास्ते प्रवृत्ति होवाथी ते दोषरूप नथी. गणधरादि समाचारीउंमां प बहुज नेद होय. तेथी जे जे, धर्मथी विरुद्ध न होय, अने त तिने पोषक होय, ते ते सर्वकार्य कोइने पण असम्मत नथी. एवी रीतें सर्व धर्मकार्यमा जाणी लेवुं वली लवण आरति प्रमुखनुं उतार, संप्रदायी सर्वगोमां तेमज परदर्शनोमां पण करतां देखीयें बीयें. तथा श्री जिनप्रजसूरिकृत पूजाविधिशास्त्रमां तो लख्युं बे के ॥ गाथा || लव - पाई उत्तारण, पालित्तय सूरिमा पुवपुरिसेहिं ॥ संहारेण श्रणुन्नयं पि संपयं सिठी एकारि जइ ॥ १ ॥ अर्थः- लवणादि उतारवा श्रीपादलिप्त सूरिप्रमुख पूर्वपुरुषोयें एकवार करवानी श्राज्ञा थपीछे वर्तमानमां श्रमे ते अनुसार करावीये बीये. स्नात्रमां सर्वप्रकारें विस्तारसहित पूजा प्रनावनादि करवाथी परलोकमां उत्कृष्ट मोक्ष प्राप्तिरूप फल थायडे. जेम चोस इंडोयें जिनजन्मस्नात्रमहोत्सव कर्या बे, ते प्रमाणे श्रावक यतिउत्सादथी करे. तेम करवाथी या लोकमां पुण्य ने निर्जरा ने परलोकमां मोक्षफल प्राप्त थायडे. या कथन राजप्रश्नीय उपांगमां करेल. वे प्रतिमा पण अनेक प्रकारनी बे. तेनी पूजानो विधि सम्यक्त्व प्र करणमां या प्रमाणे लख्यो बे. ॥ गाथा ॥ गुरु का रिवाइ के, अन्नेसय का रिवाइ तं बिंति ॥ विदि का रिश्रा श्रन्ने, पडिमाये प्राण विद्वाणं ॥ १॥
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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