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________________ नवम परिच्छेद. (४१५) ३२ पद्मासन बेसी, नासाग्रलोचन स्थापन करी मौनता धारण करी वar मुखकोश बांधी, जिनराजनी पूजा करे. वे पूर्वोक्त एकवी प्रकारी पूजानां नाम लखीये बीये. १ स्नात्र पूजा, ‍विलेपनपूजा, ३ जरण पूजा, ४ पुष्पपूजा, ५ वासपूजा. ६ धूप, उ दीप, फल, अक्षत, १० नागरवेलनां पान, ११ सोपारी, १२ नैवेद्य, १३ जल, १४ वस्त्र, १५ चामर, १६ बत्र, १७ वाजित्र, १० गीत, १७ नाटक, २० स्तुति, २१ भंडार वृद्धि. जे वस्तु बहुज सुंदर होय, ते जिनराजनी पूजामां वापरवी जोइये. या पूजाना प्रकार श्री उमाखातिवाचककृत पूजाप्रकरणमां प्रसिद्ध बे. विवेक विलासमां लख्युंबे के श्रावक ईशानखुणामां पण देवघर बनावे. वली पग पर पगधारणकरी, विषमासने बेसी थडक श्रासने बेसि, वामपग उंचा राखी, वामहस्तथी जिनराजनी पूजा न करे. शुष्क पुष्पोथी पूजा न करे, जे पुष्प धरतीपर पडीगयुं होय, जेनी पांखडी सडी गइ होय, नीच लोकोनो जेने स्पर्श थयो होय, जे देखवामां अशुभ होय, जे विकस्वर न थयां होय, जे कीडाथी खवायेलां दोय. जे रातन वासी होय, जे मकडीनां जालांवालां होय, जे श्रमनोइ होय, जे दुर्गंधवालां होय, सुगंधरहित होय. खाटी गंधवालां होय, मलमूत्रनी जगामां उत्पन्न थयेला होय, पवित्र थयेलां होय, एवां पुष्पोथी जिनराजनी पूजा न करवी. विस्तारसहित पूजा करवाना अवसरमां, तथा निरंतर छाने वि शेषें करी पर्व दिवसोमा सात अथवा पांच कुसुमांजलि चढावे. पढी जगवाननी पूजा करे. कुसुमांजलि करतां या विधि करे. प्रातसमये प्रथम निर्माल्य उतारे, पढी प्रकालकरे, संदेपथी पूजा करे, यारति मंगल दीवो करे. पढी स्नानादि पूजासहित बीजी वार पूजानो प्रारंभ करे. देवनी पासे पंचामृतसंयुक्त कलश स्थापन करे. पी "मुक्तालंकार विकार सारसौम्यत्वकांतिकमनीयं ॥ सहज निजरूपनिजित, जगत्रयं पातु जिन बिबं " ॥ १ ॥ श्रा गाथा कही अलंकार उतारे, पढी " वयि कुसुमाहरणं, पयइ पइतिय मनोहरछायं ॥ जाणरूव मऊणपीठं, संवियं वो सिवं दिसर्ज ॥ २ ॥ श्र गाथा कही जमणे श्रंगें कलशथी प्रकालन करी, चंदन करी, चंदन चर्ची, धूप उखेवे. पढी क
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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