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________________ (४१४) जैनतत्त्वादर्श. लाधरने पाणीनो स्पर्श थंयापली जिनबिंब उपर ते पाणी पडे बे. तेमां दोष नथी. आ वृद्धोनी आचरणा बे. तेवीजरीतें चोवीशी गट्टा आदिमां पण जाणी लेबु. ग्रंथोमां पण एवीज रीति देखवामां आवे जे ॥ नाष्यकारनुं वचन अहींयां लखीयें बीयें. जिनराजनी शद्धि देखावावास्ते कोजिक्तजन एक प्रतिमा बनावे , साथे प्रगटपणे अष्टमहापातिहार्य देवागम सुशोजित रचावे . २ दर्शन, ज्ञान, चारित्रनी आराधनावास्ते कोश् त्रण तीर्थी प्रतिमा बनावे . ३ को जक्तजन पंच परमेष्टिना आराधन निमित्तें नयापन (उजमणा) मां पंचतीर्थी प्रतिमा जरावे . ४ चोवीश तीर्थंकरोनां कल्याणक, तप उजमणां वास्ते जरतक्षेत्रमा जे छपजादि चोवीशे तीर्थकरो थया , तेजेना बहुमान वास्ते को चोवीशी बनावे . कोइ जतिथी मनुष्यलोकमां उत्कृष्ठा एककालमा एकसो सितेर तीर्थंकर विहरमाननी एकसो सित्तेर प्रतिमा बनावे बे; ते कारणथी त्रण तीर्थी, पांचतीर्थी, चोवीशी आदिनुं बनावq युक्तियुक्त जे. श्रा पूर्वोक्त सर्व अंगपूजा बे. हवे अग्र पूजानुं वर्णन करीये बीये. रूपाना अथवा सोनाना वा धोला अक्षत, सरसव प्रमुखथी अष्टमंगलादि श्रालेखन करे, जेम श्रेणिकराजा दररोज एकसो आठ सोनाना जवथी त्रिकाल जगवाननी प्रतिमा सन्मुख साथी करता हता तेम करे; अथवा ज्ञान, दर्शन, चारित्रनी आराधनावास्ते अनुक्रमें पाटला उपर अदतना त्रण पुंज करे तथा साथीथा करे, तथा अशन ते एक रोटली जातप्रमुख, २ शेलडी रसप्रमुख ते पान, ३ पक्वान्नादि ते खादिम, ४ तंबोलादि ते खादिम. श्रा चारे प्रकारनां नैवेद्य नगवान् सन्मुख ढोवे. तथा उत्तम प्रकारना लीलां फल तथा सुकां फल. दाडिम, सफरजन, संतरां, नालीथर, बदाम प्रमुख प्रज्जु आगल ढोवे. वली गोशीर्ष चंदना दियी तथा पुष्पप्रकरथी विलेपन पूजनकरी श्रारति प्रमुख दीपक पूजा करे, या सर्व अग्रपूजा . ॥ यद्नाष्यं ॥ गाथा ॥ गंधव नह वाश्य, लवण जलारत्तिा दीवाश् ॥ जं किञ्च सबंपिउँ, अरई अग्गपूआए ॥१॥ नैवेद्य पूजातो दररोज करवी ते सुखदायक बे, तेनुं फलपण मोटुंबे. कोरं अनाज तथा रांधेदुं अनाज पण चढावे. लौकिक शास्त्रमा पण कयु डे के ॥ धूपोदहति पापानि,
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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