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________________ बोल मनुष्याना चीपडामा, १४ सर्व अशुचिस्मा, १२ स्त्री पुरु (४०४) जैनतत्त्वादर्श. वेग रोकवाथी मृत्यु थ जाय . वली वमन रोकवाथी कुष्ट रोग थइ जाय . कदापि या त्रणे वात नही थाय तो रोग तो अवश्य थशे. श्वेष्म करवामां आवे त्यारे तेना उपर धूड नाखी देवी; कारण के श्री प्रज्ञापना उपांगना प्रथम पदमां लख्युं बे के चौदस्थानमा संमूर्बिम जीव उत्पन्न थाय . ते चौदस्थाननां नाम १ पुरीष (विष्टा) मां, २ मूत्रमां, ३ मुखना धुंकमां, ४ नाकना मेलमां, ५ वमनमां, ६ पित्तमां, वीर्यमां, वीर्य रुधिरना संगममां, ए राध (परु) मां, १० वीर्यना पुजल अलग निकली पडे तेमां, ११ जीवरहित कलेवरमां, १२ स्त्री पुरुषना सं. योगमां, १३ नगरनी मोरीमां, १४ सर्व अशुचिस्थानमां, जेमके कानना मेलमां, श्रांखना चीपडामां, बगलना मेलमा; इत्यादि. श्रा सर्वे चौद बोल मनुष्यना संसर्गवाला ग्रहण करवा अने ज्यारे शरीरथी अलग मेल थाय बे, त्यारे जीव उत्पन्न थाय . _वली दांतण पण निरवद्य स्थानमां करे, दातण श्रचित्त जाणेला - दनु कोमल करे; दांतोने दृढ करवा वास्ते तर्जनी आंगलीथी दांतोनी बीड घसे; जे दांतनो मेल पडे, तेना उपर धूड नाखी दे. दातण पण के. वीरीतें करे ? दातण सीधुं, गांव विनानु, जेनो कुचो सारो थाय तेवं, आगल जतां पातढुं, नानी बांगली समान जाडं, सारीजूमिमां उत्पन्न थयेबुं, एवं लश् तेने कनिष्ठा अने अनामिका श्रांगली वचे पकडी, प्रथम जमणी दाढा घसे, पड़ी डाबी दाढा घसे; स्वस्थ थ उपयोगथी दांतने अने पेढाने पीडा न थाय तेम घसे. उत्तर तथा पूर्वसन्मुख निश्चलासन थी बेसी मौनयुक्त दातण करे. उर्गंधी, सुकी, पोली, खाटी, खारी वस्तु दांतने न घसे वली व्यतीपात, रविवार, संक्रातिदिन, ग्रहण लागवाने दिन, नवमी, अष्टमी, पडवो, चौदश, पूर्णमासी, अमावास्या, था दिनो. मां दातण न करे.. जो दातण न मले तो मुख शुद्धिने वास्ते बार कोगला करे, अने जलतो हमेशां उतारे. दातणनी फाडथी जीजनो मेल हलवे हलवे सघलो उतारीने शुद्ध स्थानमा दातण धोश्ने पोताना मुखसन्मुख नाखे. वली खांसीवालां, श्वासवालां, तपवालां, अजीर्णवाला, शोकवाला, तृषावालां, मुख पाकेलां, मस्तक, कान, नेत्र, हृदयना रोगवाला, दातण न करे.
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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