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________________ 1 ( ३८ ) जैनतत्त्वादर्श. " प्राशु संतरां, केरी, निंब तथा शेरडीनो तत्कालनो काढेलो रस, तथा तत्काल काढेलुं तनुं तेल, तत्काल जांगेलां बीज, नालीयेर, सोपारी, सिंगोडांप्रमुख, तथा बीजरहित करेलां पाकां फल खडबूजादि, तथा अत्यंत म दन करीने काढेला जीरादि, या सर्व अंतर्मुहूर्त सुधी मिश्र बे, पढी प्राशुकनो व्यवहार बे तथा बीजांपण प्रबल अग्निना योगबिना क करेला अंतर्मुहूर्त सुधी मिश्रबे, पढी प्राशुकनो व्यवहार बे. वली - प्राशुक पाणी, काचां फल, काचां अनाज अगर जो बहुज मर्दन कर्यां होय तोपण लवणानि प्रमुख प्रबल शस्त्र विना, प्राशुक यतां नथी; कारण के श्री पंचमांग जगवती सूत्रना रंगणीशमा शतकना त्रीजा उद्देशमां लख्युं बे के वज्रमय शिला, वज्त्रमय लोटो, अने श्रामला प्रमाण पृथ्वी काय लइने एकवीरा वार वाटवामां आवे तोपण केटलाएक पृथ्वीका यना जीवोनो लोटाने स्पर्श पण यतो नथी, एवी ते जीवोनी सूक्ष्म कायाडे. वली सो योजन उपरांतथी आवेलां दरडां, खारेक, द्राक्ष, लालप्राक, खजुरादि मेवा, तीखां, पीपर, जायफल, बदाम, खोड, नेउजा, जरगोजा, पस्तां, चारोली, चीनी, उज्वल सिंघालूण, साजी, नहीमां पकावेलुं लू, बनावटी खार, कुंभारें करेली माटी एलायची, लवींग, जा वंत्री, सूकी मोथ, कोकणदेश प्रमुखनां केलां उनां करेला सिंगोडा, सोपारी, या सर्वनो प्राशुक व्यवहार बे. साधु पण कारण प्रसंगें ग्रहण करे बे. या वात कल्पनाष्यमां पण लखेली बे. " जोयण सयं तु गंतु श्र पाहारे जंड संकंति" इत्यादि. तेमां हरडे, पीपर प्रमुख श्राचरणीय बे ते कारणथी लेवाय बे, अने खजूर, द्राक्ष प्रमुख अनाचरणीय बे. वली उत्पल कमल, पद्मकमल, तडकामां राखवाथी एक पहोरनी अंदरज - चित्त थर जाय बे; अने मोगरानां फुल, जुइनां फुल तडकामां बहुवखत. पड्यां रहे तो पण चित्त थतां नथी, परंतु मोगरानां फुल पाणीमां नाखेला एक पड़ोरनी अंदरज चित्त घर जाय बे, अने उत्पल कमल तथा पद्मकमल बने पाणी मां राखवाथी बहु वखत सुधी चित्त थ तां नथी. " शीतयोनिकत्वात्. " तथा पांदडाना, कूलोना, तेमज जे फलोमां गोवली बंधा न होय तेना, तथा वथुवा प्रमुख लीली वनस्प
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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