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________________ (३०) जैनतत्त्वादर्श काल लागे , तेटलो काल वायुनो एक नाडीमांथी बीजी नाडीमां सेचार करतां लागे बे. हवे पांचतत्त्व संबंधी बोधस्वरूप कहिये बियें. नासिकानो पवन जो जंचो जाय तो अग्नितत्त्व, जो नीचो जाय तो जलतत्त्व, जो तिबों जाय तो वायुतत्त्व, जो नासिकाची निकली सिधो तिर्यो जाय तो पृथ्वी तत्त्व, जो नासिकाना बंने पुटनी अंदर वहे, बहार निकले नहि तो श्राकाश तत्व; ए प्रमाणे जाणवू. प्रथम पवनतत्त्व वहेने, पनी अग्नितत्त्व वहे बे, पड़ी जलतत्व वदेने, पली पृथ्वीतत्त्व वहेडे, पठी आकाश तत्त्व वहे. निरंतर आ प्रमाणे अनुक्रम ने. बंने नाडीउमां पांचे तत्त्व वहे बे; तेमां पृथ्वीतत्त्व पंचाश पल प्रमाण वहे , जलतत्त्व चालीश पल प्रमाण वहे , अमितत्त्व त्रीश पल प्रमाण वहे. वायुतत्त्व वीश पल प्रमाण वहेडे, श्राकाशतत्त्व दश पल प्रमाण वहे. पृथ्वी अने जलतत्वमा शांतिकार्य करवां; अग्नि, वायु तथा आकाशतत्त्वमां दीप्तिमान् अने स्थिर कार्य करवा; ए प्रमाणे करे तो शुज फलोन्नति थाय बे, जीववानो प्रश्न, जयप्रश्न, लाजप्रश्न, धनार्जन प्रश्न, मेघवर्षण प्रश्न, पुत्र होवानो प्रश्न, जवा आववना प्रश्न, या प्रश्नो जो पृथ्वी अने जलतत्त्वमां करे तो शुज थाय; अने अग्नि, वायु वदेतां करे तो शुज थाय नहि वली जो पृथ्वीतत्त्वमा प्रश्न करे तो कार्यनी सिकि स्थिरपणे थाय, अने जलतत्वमा कार्य शीघ्रताथी थाय. प्रथमनी जिनपूजा करतां, धन कमावा जतां, पाणिग्रहण करतां किलो खेतां, नदी उतरतां, गयेलानुं आगमन पुगतां, जीवननो प्रश्न करतां, घर क्षेत्रादि खरीदतां, करीश्राणां लेतां, वेचतां, वर्षतुं प्रश्न करतां, नोकरी करतां, खेती करतां, शत्रुने जीतता, विद्यारंज करतां, राज्याभिषेक करतां, इत्यादि शुज कार्यों करतां चंषनाडी वहे तो कल्याणकारी . प्रश्नसमये कार्यना आरंजमा पूर्ण वामनाडी प्रवेश करती होय, त्यारे निश्चयपूर्वक कार्यसिद्धि जाणवी, तेमां संदेह नथी. वली अमुक सख्स केदमांथी क्यारे बुटशे ? अमुक रोगी साजो क्यारे थशे! अमुक स्थानचष्ट थयेलो क्यारे पद प्राप्त करशे? या प्रश्नोमां, तथा युद्ध करवाना प्र
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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