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________________ २४ ए०४ अनुक्रमणिका. २० अंगीयारमुं पौषधशाला बनाववानुं द्वार, बारमु सम्यक्त्व द र्शननुं द्वार, तेरमुंव्रतादि पालवा, हार, चौदमुं दीक्षा ग्रहण करवानुं स्वरूप, तेमां जावश्रावकना सतर गुणो कहेल . ४ए १ पंदरमुं आरंजत्यागर्नु, शोलमुं ब्रह्मचर्य पालवा, सतरमुं प्र. तिमादि तप विशेषतुं तथा अगर{ आराधनानुं द्वार. ए. ॥ अगीयारमा परिछेदमां श्री ज्ञषनादिथी महावीरपर्यंत जैनमतादि __शास्त्रोना अनुसारे इतिहास कहेल , तेनी अनुक्रमणिका.॥ १ जैनमत क्यारथी प्रचलित थयो, एवी ब्रांतिनुं समाधान. ५०० २ जगत्ना स्वरूपमा उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल तथा सुखम सुखमादिक ब श्रारानु, तथा सात कुलकरोतुं किंचित स्वरूप.५०१ ३ रुपनदेवस्वामि किंचित् वृत्तांत तथा तेमना सो पुत्रोना नाम. तथा हाथी घोडादिकना संग्रहनी विधि. आहारनी विधि, तथा शिल्पना नेद. ५ कर्मधारमा खेती वाणिज्यादिकनुं स्वरूप, तथा पुरुषनी बहो तेर कला, तथास्त्रीनी चोसठ कला,तथा अढार प्रकारनी बीपी.५०ए ६ मातापितानी दीधेल कन्याना विवाहप्रवर्तननुं स्वरूप. ५११ ७ को सृष्टिनो कर्त्ता नश्री, तेनुं स्वरूप. ५११ ब्रह्मादि शब्दोथी ध्यान करवानी प्रवृति, तथा निदा देवानी रीति.५१५ ए धर्मचक्र तीर्थ विक्रम राजासुधी चाव्युं, तेनुं वृत्तांत. ५१२ १० म्लेड, निर्दयी, अने अनार्य लोक थयानुं वृतांत. ११ श्री रुषजदेवनुं ब्रह्मा नाम प्रचलित थयानुं वृतांत. ५९४ १५ श्री श→जयतुं पुडरिकगिरि नाम थयानुं वृतांत. પષ્ટ १३ परिव्राजकोना लिंग उत्पन्न थयानुं स्वरूप, ५१४ १४ मरिचीथी कपिलादि मत उत्पन्न थयानु स्वरूप. १५ श्राजरतखंडनुं नाम जरतखंड राखवानो हेतु. ५१६ १६ श्रावकोनुं ब्राह्मण नाम क्यारथी प्रचलित थयु, तेनुं स्वरूप. ५१६ १७ कुरुवंशनी उत्पत्ति, यज्ञोपवीतनी उत्पति, चार वेदोना नाम ब दलवानो तथा मतलब फेरववानो हेतु, चारे वेदोनी उत्पत्ति. ५१७ १७ याज्ञवल्क्य, सुलसा, पीप्पलाद, तथा पर्वत प्रमुखथी फरी श्र
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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