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________________ जैनतत्त्वादर्श. ( ३३४ ) निर्बल चाय बे जो काम अभिलाषा अधिक होय तो दिवसनी पण मर्यादा करे. तेवीजरीतें स्त्रीपण पर पुरुषनो त्याग करे. ए प्रमाणे चोथुं व्रत पाले. या व्रतना पांच अतिचार बे. ते वर्जे, ते लखियें बियें. १ अपरिग्रहीतागमन अतिचार परण्या विनानी (कुमारी) तथा विधवा स्त्री परिगृहीता कड़ेवाय बे, कारण के तेर्जनो को नर्त्तार नथी. कोइ अल्पमति, विषयाभिलाषी मनमां एम विचारे के में तो परस्त्रीनो त्याग करेलो बे, घने अपरिगृहीता तो कोइनी स्त्री नथी, तेथी तेनी साथै विषयसेवन करवाथी मारुं व्रतजंग नहि थाय, एवो विचार करीने कुमारी तथा विधवा स्त्रीनी साथे जोग विलास करे, तथा स्त्री पण व्रतधारण करीने कुंवारा तथा रांडेला पुरुषनी साथे व्यजिचार सेवन करे तो या अतिचार लागे, आ प्रथम अतिचार. २ इत्वर परिगृहीतागमन प्रतिचार इत्वर अर्थात् अल्पकाल कोपुरुष थोडी मुदत माटे कोइ वेश्याने पोतानी करी राखेली होय तेवे प्रसंगें ते पुरुष ज्ञानना उदयथी एवो विचार करे के मारे तो परस्त्रीनो त्याग बे, छाने वेश्यानो संबंध तो मारे अल्पकाल माटे बे, तेथी वेश्यानी साथ सेवन करवायी मारा व्रतनो जंग थशे नहि, एवा श्रज्ञानतायुक्त विचारथी विषयसेवन करे तो बीजो अतिचार लागे. वली स्त्री पण पोतानी शोक्यना वाराने दिवसे पोताना जतरनी साथे विषय सेवन करे ते एवा वीचारथी के मेंतो मारापति साथे विषय सेवन करेल बे, तेथी मारा व्रतनो जंग थशे नहि, तेवे प्रसंगे स्त्रीने पण अतिचार लागे. पूर्वोक्त बंने रीतिमां श्रावक यथार्थ रीतें जाएया पढी फरीथी ते प्र. माणे करे तो व्रतजंग थाय, परंतु अतिचार नहि. ३ नंगीडा अतिचार अनंगनाम काम. ते काम कंदर्प जाग्रत करवो. लिंगन चुंबन प्रमुख करवां नेत्रोना हाव नाव कटा, वा मस्करी प्रमुख, परस्त्री साथे करवां. मनमां एवो निचार वरवो के में तो परस्त्री साथे परस्पर एक शय्या उपर विषयसेवननो त्याग करेलो बे, परंतु अनंगक्रीडानो त्याग करेलो नथी. एवो विचार करनार मूढमति जाणतो नथी के पूर्वोक्त कामक्रीडाथी व्रत कदापि रहीशके नहि, कारण के तेवी मनोवृत्ति महापाप तो ते जीवें उपार्जन करी लीधुं. निश्चय नयना
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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