SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तम परिछेद. (३१५) र्तमानमांजे नंडारोमा पडेलां , ते सर्व अमे वांचेला नथी, आटला श्राटला उपजवो जैनशास्त्रो उपर वीतवाथी अमे सर्व शंकाउँनुं केवी रीतें समाधान करी शकीए ? ते कारणथी जैनमतमां शंका न करवी. श्रमे सर्व मतनां शास्त्रो अवलोकन करेला बे, परंतु जैनमतसमान अति उत्तम मत बीजो कोश्पण मारा देखवामां आव्यो नश्री, तेथी आ मतमा दृढ रहे जोश्ए. १ शंका अतिचार ते कहेवाय , जेम के जिनवचनोमां शंका करवी अर्थात् जिनेश्वर लगवाने कथन करेला नाव सत्य हशे के नहि ? श्रा प्रथम अतिचार डे. २ बीजो आकांक्षा अतिचार. अन्यमतवालाउँनां अज्ञानकष्ट देखी, तेमज को पाखंडीना विद्यामंत्रना चमत्कार देखी, तेमज पूर्वजन्मना अज्ञानकष्टथी फल पामेला अन्यमतवालाउँने सुखी तेमज धनवान् देखी मनमां विचारे के अन्यमतवालार्जुना धर्म तथा ज्ञान सारांबे, जेना प्रजावधी, ते धनवान् , सुखी, तथा पुत्रादि परिवारवाला थाय , ते कारणथी हुँ पण तेऊनोज धर्म अंगीकार करुं, जेथी हुँ पण धनवान् तेमज पुत्र परिवारवालो थालं. श्राकांदा अतिचार तेज जीवोने लागेले, जे जीवोने जैनधर्मनो बहुज सारी रीतें बोध होतो नथी. कारण के जैनधर्मवाला पण सर्व दरिजी तथा पुत्रादि परिवारथी रहित नश्री, तेमज अन्यमतवाला पण सर्वे धनवान् तेमज परिवारवाला नथी, सारांश के सर्व पोतपोतानां पूर्वनां तथा जन्मांतरनां करेला पुण्य पापनां फल जोगवे जे. जुर्म के केटलाएक, मनुष्यजन्ममां साते कुव्यसननो सेवनारां बतां धनवान् , अने केटलाएक कसार, खाटकी इत्यादि नीचधंधानां करनारां पण धनवान् तेमज पुत्रादि परिवारवाला तेमज सुखी बे, अने केटलाएक या अवस्थाथी विपरीत , ते कारणथी मात्र तेज सत्य डे के दरेकजीव पोताना पूर्वना तेमज जन्मांतरना सुकृत पुष्कृतद्वं फल जोगवे बे, मात्र था जन्मनां कृत्योर्नुज फल जोगवता नथी. सर्व मतोमां राजाज थ गया बे, तेमज रंक पण बहुज , ते कारणथी बीजा मतनी बाकांदा न करवी. जो करी ए तो बीजो अतिचार, । ३त्रीजो वितिगिजा नामे अतिचार बे. जे जीव पोतानां पूर्वजन्मनां करेलां पापोना उदयथी कुःख जोगवे , त्यारे एवो विचार करे
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy