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________________ (quo) जैन तत्त्वादर्श. परंतु ते स्थापनाने, ते देव कहेवा ते वात सत्य बे. ४ नाम सत्य, कोइ पुरुष पोताना पुत्रनुं नाम कुंलवर्द्धन राखेलुं बे, अने जे दिवसथी ते पुनो जन्म थल बे, ते दिवसथी तेना कुलनो नाश यतो जाय बे, तो पण ते पुत्रने कुलवन नामथी बोलावे तो ते सत्य बे. ५ रूप सत्य. कदापि गुणोथी ष्ट होय तो पण साधुना वेषवालाने साधु कड़े तो ते सत्य बे. ६ प्रतीत अर्थात् अपेक्षा सत्य. जेम के मध्यमानी अपेक्षाए अनामिका आंगलीने नानी कहेवी ते 9 व्यवहार सत्य. जेम के पर्वत बले बे, रस्तो चाले बे, इत्यादि. ८ जावसत्य. जेम के तोतामां पांच रंग बे, तोपण तोताने लीला रंगवालो कहेवो इत्यादि. ए योगसत्य. जेम के दंडना योगथी दंडी कहेवो, इत्यादि. १० उपमा सत्य. जेम के मुख, चंद्र समान बे, इत्यादि. दशप्रकारनां सत्य बे. हवे दशप्रकरनां जूठ कहियें बियें. १ क्रोधमिश्रित अर्थात् क्रोधने वश थर वचन बोलवां ते असत्य, २ मानना उदयथी बोलवां, ३ मायाना उदयथी बोलवां, ४ लोजना उदयथी बोलवां, ५ रागना बंधनयी बोलवां, ६ द्वेषना उदयथी बोलवां, उ हास्यने वश यर बोलवां छनयने वश थ बोलवा, ए विकया करवी, १० जे बोलवाथी जीवनी हिंसा थाय. या दश प्रकारनां सत्य वचन बे. हवे दश प्रकारां मिश्रवचन कहियेंबियें १ उत्पन्न मिश्रित जेम के खबर बिना कहे के श्राजे या गाममां दशबालक जन्म्या बे, इत्यादि . २ विगतमिश्रित, जेम के खबर विना कहेतुं के आने या गाममां दशमाणस मुयां बे, इत्यादि. ३ उत्पन्न विगत मिश्रित जेम के खबर विना कहे के जे या गाममां दश जन्म्या बे, अने दशज मुखा बे, ४ जीवमिश्रित. ते जीव जीवना राशिने कहेतुं के था जीव बे. ५ अजीव मिश्रित ते अन्नना राशिने कहेतुं के या अजीव बे. ६ जीवाजीवमिश्रित ते जीव जीव बने माटे मिश्रभाषा बोलवी ते. नंतमिश्रित ते मूल यदि अवयवोमां केटलीएक जगाए अनंत जीव बे, कोश्जगाए प्रत्येक जीव बे, तेउने प्रत्येक वनस्पतिकाय कहेतुं ते, प्रत्येक मिश्रित ते प्रत्येकजीवोने अनंतकाय कदेवां ते. ए श्रद्धामिश्रित. ते बे घडी तडको थया बतां कहे के दिवस उग्यो बे. १० अद्धा
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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