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________________ (२३४) जैनतत्त्वादर्श. प्रगट करवां, तेमनी पूजानो नाश करवो, तेम करवाथी जे उत्पन्न थाय ते वैदारणिकी क्रिया, जे उपयोगथी विपरीत ते अनाजोग, तेनाथी उपलदित जे क्रिया ते अनाजोगक्रिया. देख्या विना तेमज पूजन, प्रमार्जन कर्याविना जीत तेमज नूमि प्रमुखउपर शरीरादिनो निक्षेप करवो ते अनाजोगक्रिया. २० पोतानी तेमज परनी अपेक्षा तेनुं नाम अवकांक्षा बे, तेनाथी जे विपरीत ते अनवकांदा, तेज कारण जे जेतुं ते अनवकांदा प्रत्ययिकी क्रिया, तात्पर्य एम के, जिनोक्त कर्त्तव्य विधियोमा जे पोताने तेमज परने जे क्रिया हितकारी होय तेमां प्रमादने वश थर जे आदर न करवो ते अनवकांदा प्रत्ययिकी क्रिया १ चालवा, दोडवा प्रमुख कायाना व्यापार, तथा हिंसाकारी, कगेर जूठ बोलवाना वचनना व्यापार, अने परलोह, ईर्ष्या, अनिमानादि मनोव्यापार, ए त्रणेनुं जे करवू ते प्रयोग क्रिया. २२ जेनाथी विषयग्रहण करिये ते समुदान इन्जिय तेनी जे क्रिया, देश तेमज सर्व उपघातरूप व्यापार ते समुदान क्रिया. कोश ए मोटुं पाप करिये के जेथी आवे कर्मनुं समुदायपणे ग्रहण थाय ते समुदान क्रिया. ३ माया तेमज लोजथी जे क्रिया थाय ते प्रेम प्रत्ययिकी क्रिया. २४ क्रोध तेमज मानथी जे क्रिया थाय, ते वेषप्रत्ययिकी क्रिया. २५ चालवाथी जे क्रिया लागे ते यापथिकी क्रिया. श्रा क्रिया वीतरागने लागे ने तेमज अप्रमत्त मुनियोने पण लागे . . हवे था पचीश क्रिया व्याख्यान करिये बियें. १ कायिकी क्रिया बे प्रकानी ने, एक अनुपरता कायिकी क्रिया अने बीजी अनुपयुक्त कायिकी क्रिया, तेमां अत्यंत कुष्ट एवा मिथ्यादृष्टि जीवोनो, मन वचननी अपेदारहित परजीवने पीडा कारक कायानो उद्यम ते प्रथम नेद तथा प्रमत्त संयतनोउपयोग विना अनेक कर्तव्य रूप कायानो व्यापार ते बीजो नेद. २ श्राधिकरणिकी क्रियाना बे प्रकार जे. एक संयोजना, बीजी निवर्त्तना. तेमां विष, गरल, फांसी, धनुष, यंत्र, तलवार, प्रमुख शस्त्रोने, जीवोने मारवावास्ते संयोजन अर्थात् एकत्र करवां, जेम धनुषने तीरनो मेलाप करवो इत्यादि, ते प्रथम नेद, तथा तलवार, तोमर, शक्ति, तोप, बंधुक इत्यादिने नवां सरस बनाववां, ते बीजो नेद. ३ जे निमित्तथी क्रोध उ, त्पन्न थाय ते निमित्त जीव तथा अजीव बे बे. तेमां जीव ते प्राणी,
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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