SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ परिछेद. (१एए) माधुर्यादि कुरसमां धातकी फूलोथी थोडी विकलता उत्पादक शक्ति देखिये बियें, तेवी रीते चैतन्य, सामान्य प्रकारथी नूतोमा उपलब्ध यतुं नथी ; तो केवीरीतें जूतसमुदायथी चैतन्य थश् शकेले ? प्रत्येकमां असत् वे ते समुदायमां थ जाय तो, सर्व समुदायथी सर्व कां बनीजवां जोश्य. ए अति प्रसंग थशे. वली जो तमे चैतन्यने धर्म मानेल , तो धर्मने अनुरूप धर्मीपण अवश्य मानवो जोश्शे. जो अनुरूप नहि मानशो तो तो जल अने कठिनता था बनेने धर्म, धर्मि मानवा जोशे, एमपण न कहेशो के नूतज धर्मि बे, कारण के नूत, चैतन्यथी विलक्षण . जुर्ज. चैतन्य बोधखरूप, तेमज अमूर्त बे; अने नूत तेनाश्री विलक्षण ; तो केवीरीते तेऽनो परस्पर धर्म, धर्मिनाव थर शकेले? वली या चैतन्य नूतोनुं कार्यपण नथी, कारण के अत्यंत विलक्षण होवाथी कार्यकारणभाव कदापि थश् शकतो नथी. उक्तं च ॥काठिन्याबोधरूपाणि, नूतान्यध्यदसिद्धितः॥ चेतना च न तपा, सा कथं तत्फलं जवेत् ॥१॥ ____वली जो चैतन्य नूतकार्य होय, तो तो सर्वजगत् प्राणिमय होवू जोश्ये. जो कहो के परिणतिविशेष सजावना अनावथी सकल जगत् प्राणिमय थर जतुं नथी, तो ते परिणतिविशेष सन्नाव सर्वत्र शा वस्ते थतो नथी ? ते परिणति पण नूतमात्र निमित्तज डे, तो केवी रीतें तेनुं को स्थडे होवू न होसिक यश् शकेले? वली ते परिणतिविशेष केवा स्वरूपवालो ? जो कहो के कठिनादिरूप बे, कारण के धुणांदि जंतु काष्टादिमां उत्पन्न थता देखिये बियें, ते कारणथी ज्यां कठिनत्वादि विशेष , ते प्राणिमय बे, बीजा नहि. श्रा पण व्यभिचार देखवाथी असत् जे. जुर्ज. अशिष्टपण कठिनत्वादि विशेष बतां को स्थडे होयजे, भने कोइ स्थलें होता नथी, अने कोश्स्थवें कठिनत्वादि विशेष विनापण संस्वेदज घन श्राकाशमां संमूर्छिम उत्पन्न थायजे. __ वली केटलाएक जीव समानयौनिकपण विचित्रवर्ण संस्थानवाला देखाय . जुर्ज. गोवरश्रादि एकयोनिवाला पण केटलांएक कालां शरीरवालां तो केटलांएक पीलां शरीरवाला होयडे, बीजां विचित्रवर्णवाला होय. संस्थानपण तेऊनां परस्पर जिन्न . जो नूतमात्रनिमित्त चैतन्य
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy