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________________ (१७७) जैनतत्वादर्श. हेतु तो कोई साध्य वस्तुमां हेतु बे, अने बीजी साध्य वस्तुमा अहेतुने, ते कारणथी नियत स्वरूपवालो नथी. १४-१५-१६ बल, जाति, निग्रहस्थान. या त्रणे पदार्थ नथी. कारण के आत्रणे वास्तवमा कपटरूप. जेए तेमने तत्वरूपें कथन करेल ने, तेना ज्ञान, वैराग्यमाटे शुं कहे ? आ संसारमा जे चोरी, उगाइ, हाथफेरी प्रमुख शिखवे, ते नेपण तत्वज्ञानना उपदेशक मानवा सरडे, ए प्रमाणे नैयायिक मतना सोल पदार्थनुं खंडन समजवु. विशेष जाणवा श्छनारें न्यायकुमुदचंड अवलोकन करवो. आ खंडन सूत्रकृतांग सिकांतथी लखेल . जुउँ बारमुं अध्ययन. इति नैयायिकदर्शनखंडन. - हवे वैशेषिकमतखंमन लखिये बियें. वैशेषिकनां कहेला तत्व पण तत्व नथी. तेउए १ अव्य, ५ गुण, ३ कर्म, ४ सामान्य, ५ विशेष, ६ स. मवाय, एम तत्व मान्यां बे. तेमां अव्य नव , १ पृथिवी, २ अप, ३ तेज, ४ वायु, ५ आकाश, ६ काल, ७ दिक, श्रात्मा, ए मन. प्रथमनां चारे अव्योने जिन्न जिन्न अव्य मान्यां ते वास्तविक नथी; कारण के परमाणु जे जे ते प्रयोग विश्रसाथी पृथिवी श्रादिना रूप पणे परिणमे पण डे, तो पण पोताना अव्यपणांने तजता नथी, श्रने अति प्रसंग होवाथी अवस्थाजेदें अव्यना नेद मानवा ते योग्य नथी. वली आकाश तथा कालने तो अमे पण अव्य मानियें लियें, अने दिशा तो श्राकाशनुं अवयव नूत .तेथी टथक् अव्य नथी. आत्मा शरीरमात्रव्यापी उपयोग लक्षण तेने अमे अव्य मानिये बियें. अव्यमन पुजलप्रव्य अंतर्जावि बे, श्रने नावमन जीवनो गुण होवाथी, श्रात्मा अंतर्नावी . वैशेषिक कहे बे के जेम पृथिवीत्वना योगथी पृथिवी , इत्यादि.आपण तेनु केहे खप्रक्रियामात्र डे कारण के पृथिवीथी अन्य बीजं कोई पृथिवीपणुं नथी, जेना योगयी पृथ्वी थाय. परंतु सर्व जे कांश ते सामान्य विशेषात्मक डे, नरसिंहाकारवत् उन्नयखनाव बे. नान्वयः सहि नेदत्वा,नानेदोन्वयवृत्तितः ॥ मृदष्यसंसर्ग, वृत्ति जात्यंतरं घटः॥१॥ नावार्थः- घटमां मृत्तिकानो अन्वय नथी, पृथु बुध्न उदराकारादि हेतुथी नेद ने, तेमज अन्वयवर्ति होवाथी घटनो मृत्तिकाथी एकांत जेद पण नथी, अर्थात् घट मृत्तिका रूपज . अन्वय
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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