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________________ (२४४) जैनतत्त्वादर्श. त्वगुणतुं चिह्न प्रसन्नता, ५ रजोगुणर्नु चिह्न संताप, ३ तमोगुण- चिह्न दीनपएं. हवे १ प्रसाद, ५ बुझिपाटव, ३ लाघव, ४ प्रश्रय. ५ अनजिब्वंग, ६ अद्वेष, प्रीत्यादि, बा सत्वगुणनां कार्यलिंग , १ ताप, २ शोष, ३ नेद ४ चलचित्त, ५ स्तंज, ६ उद्वेग, श्रा रजोगुणनां कायलिंग . तथा १ दैन्य, २ मोह, ३ मरण, ४ असादन, ५ बीजत्सा, ६ ज्ञान गौरवादि, ७ आ तमोगुणनां कार्यलिंग के. कार्योथी सत्त्वादि गुणनो लास थाय बे. तथा लोकमां जे कांश सुख उपलब्ध थाय , जेम के आर्जव, मार्दव, ३ सत्य, ४ शौच, ५ लजा, ६ बुद्धि, उदामा, अनुकंपा, प्रसादादि, या सर्व सत्त्वगुणनां कार्य में तेमज जे कांश पुःख उत्पन्न थाय ने जेम के १ वेष, २ मोह,३ मत्सर ४ निंदावचन, ५ बंधन, तापादिस्थान, आ सर्व रजोगुणनां कार्य में तेमज जे कांश मोह उपलब्ध थाय बे, जेमके १ अज्ञान, मद,३ बालस्य, ४ जय, ५ दैन्य, ६ कृपणता, नास्तिकता, विषाद, ए उन्माद, खप्नादि या सर्व तमोगुणनां कार्य .श्रा सत्त्वादि परस्पर उपकारीत्रण गुणोथी सर्व जगत् व्याप्त बे, परंतु ऊर्वलोकमां देवताउँमा प्रधानपणे सत्त्वगुण , अने अधोलोक तिर्यंच, नरकविषे प्रधानपणे तमोगुण , तथा मनुष्यमां प्रधानपणे रजोगुणले. या त्रणे गुणोनी जे सम अवस्था तेनुं नाम प्रकृति. ते प्रकृतिनां अपरनाम प्रधान, अव्यक्त एमपण . प्रकृति नित्यखरूप ." अप्रच्युतानुत्पन्न स्थिरैकखनावं कूठस्थं नित्यं" था नित्यनुं लदाण . तथाथा प्रकृति जे बे, ते अन्वय, असाधारणी, अशब्दा, अस्पर्शा, अरसा, अगंधा, अव्यया, केहेवाय जे. जे मूल सांख्य ते दरेक आत्मानी साथ जुदा जुदा प्रधान माने अने जे नवीन सांख्य ते सर्व आत्माउमा एक, नित्य, प्रधान माने. प्रकृति अने श्रात्माना संयोगथी सृष्टि थाय बे, ते कारणथी सृष्टि थवानो क्रम लखियें लिये. ' ते प्रकृतिथी बुद्धि उत्पन्न थाय.गाय श्रादि सन्मुख देखवाथी,आ गायडे, घोडो नथी, तथा श्रास्थाणु ने, पुरुषनश्री, एवो जे निश्चयरूप अध्यवसाय थाय ने तेनेबुद्धि कहे बीजं तेनुं नाम महत्पण कहेले. ते बुद्धिनां आठ रूप .१ धर्म, ज्ञान, ३ वैराग्य, ऐश्वर्य, आचार सात्विक १ सुकुंकाष्ठ.
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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