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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग ३७ विषय -वोल भाग- पृष्ठ प्रमाण पाठ कर्म ५६० ३ ४३ . विशे गा १६०६-१६४४, . .. तत्त्वार्थ अध्या ८,कर्म भा.१, "भ श प्उ Eसू ३५१,मश: उ ४ उत्त य ३३, पन प २३, , "द्रव्या लो.स १० । पाठ कर्मों का क्षय करने ६८३ ७ ११७ उब सू ४१ " वाले महात्मा यहाँ की स्थिति परीकरके कहॉउत्पन्न होते हैं? ..! •i . . . . आठ कमां की स्थिति ५६० ३ ४३-६०पन्न प २३ सू २६४,तत्त्वार्थ, ' अध्या सु१५म२१,उत्तथ,३३ आठ कमा के अनुभाव ५६० ३ ४३-६०पन्न प २३ सू. २६२' आठकमर्विन्धककारण५६० ३-४३-६०भ०२०८ उ०६ सू० ३५१ आठकमा के भेद प्रभेद ५१० ३ ४३-६० पन्न०प २३ तू ३६३,उक्त श्र.३३ __ कर्म भा१,तत्वार्थ अध्या सू ५-१४ आठ कारण झूठ बोलनेके५८२ ३ ३७ साधु प्र महाव्रत २ आठ कृष्ण रानि ६१६ ३ '१३३ ठा ८उ ३सू ६२३, रा.६उ सू २६२ वि द्वा २.६७ गा १८४१ मे १४४४ माठ गण ५९-६ ३ १०८. पिगल , .. .. : आठ गणधर पाश्वनाथके ५६५ ३३ 'ठा ८ उ ३ सूं. ६ १७,सम.८ ___ठाणाग सूत्र एक समवायाग सूत्र क मूल पाठ में भगवान्, पार्श्वनाथ के पाठ गणधर बतलाये है किन्तु हरिभद्रीयावश्यक गाथा २६६ से २६९ में, प्रवचन सारोद्धार द्वार १५ मैं तथा मतरिमय ठाणा वृति द्वार १११ में भगवान् पार्श्वनाथ के दस गणधर होना बतलाया है । ठाणाग और समवायाग के टीकाकार श्री अभयंदेवमूरि ने भी टीका में दन गणधर का होना माना है । मूल पाठ में दी हुई पाठ की सख्या का सामजस्य करने के लिये उन्होंन टीका में यह जामा किया है कि अल्प यायु होने के कारण सूत्रकार ने दो गणधरों की विवक्षा न कर मात्र ही गणधर बतलाये है।
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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