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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह,अाठवा भाग विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण अरिहन्त २७४ १ २५२ भ, मगलाचरण परिहन्त " ४३८२४५ ठा.६ उ.३सू ४६ १,पन्न प १सू ३७ अरिहन्त देव की वादि ६७६ ७ ७१ सम ३५ री ,रा स ४ टी ,उव के पैंतीस अतिशय सू.१०टी अरिहन्त देव के चौतीस ६७७ ७ ६८ सम ३४,स श द्वा ६७ अतिशय अरिहन्त भगवान के ७८२ ४ २६० स्म ३४,म. श. द्वा. ६६ अष्ट महामातिहाये अरिहन्त भगवान् के १२६(ख )१ ६६ स्या का. १ टी. . चार मूलातिशय अरिहन्त भगवान् के ७८२ ४ २६० सम ३४, स श. द्वा ६६ वारह गुण स्या का १ टी. अरिहन्त भगवान् में नहीं ८८७ ५ ३६७ प्रवद्वा ४१ गा.४५ १-४५२, स. पाये जाने वाले अठारह शद्वर ६६ गा १६१.१६२ दोष दो प्रकार से अरिहन्त मंगलकारी, १२६ (क)१ ६४ भाव.ह.य४ पृ. ५६६ लोकोत्तम और शरण रूप है अरूपी ६० १ ४२ तत्त्वार्थ. अभ्या. ५ सू.३ अरूपी अजीव के तीसभेद६३३ ३ १८१ भागम.,पचीस वोल का थोकडा, पन्न.प.१सू.३,उत्त,प्र.३६गा.४-६ अरूपीअजीव के दस भेद ७५१ ३ ४३४ पन्न.१ १३,सू,नी,प्रति १ सू ४ अर्जुनमाली(निर्जराभाधना)-१२ ४ ३८६ भेत. व ६ अ. ३ अर्जनमाली की कथा ७७६ ४ १६६ मत व ६ अ 3 अर्थ कथा ६७ १६६ टा ३३.३सू. १८६
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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