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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवाँ भाग ... .......~~ ~~~~rrrrrror विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण अपर सामान्य ५१ १ ४१ रत्ना परि ७ सू १६ अपरावर्तमान प्रकृतियाँ ८०६ ४ ३५१ कर्म भा ५ गा १८ अपरिग्रह पर ग्यारहगाथाएं९६४ ७ १८१ । अपरिग्रह महावत की ३२१ १ ३२६ श्राव ह य ४प ६५८,प्रव. द्वा ७२ पाँच भावनाएं गा ६४०,सम २४,याचा श्रु २ चु ३अ २४,ध भधि उग्लो.४५टी अपरिणय दोप ६६३ ३ २४७ प्रवद्वा ६७गा ५६८, पिं.नि गा।२०,ध अधि ३ श्लो २२ (आहार का दोप) टीपृ ४१,पचा १३गा २६ परिश्रावीस्नातकनिग्रन्य३७१ १३८७ठा सू ४४५,भ.श, २५उ ६सू ७५१ अपयरसित श्रुत ८२२ ५ ८ न सू ४३,विशे गा ५३७से ५४८ अपर्याप्तक जीव ८ १६ ठा २ उ २ सू ७६ अपवर्तना करण ५६२ ३ ६५ कम्म गा. २ छापवर्तनीय प्राय विष- ५४०३६७ तत्त्वार्थ अध्या.२ सू ५२,ठा २ यक शका समाधान उ.३ सू. ८५ टी. शपवाद (विशेष नियम) ४० १ २५ वृ.नि गा ३१६,स्या का ११टी अपवाद सूत्र ७७८ ४ २३६ वृ उ १निगा १२२१ अपश्चिम मारणान्तिकी ३१३ १३१४ उपा म १ सू.७,ध अधि २ संलेखना के अतिचार 'लो ६६ टी पृ.२३१ अपाय विचय धर्मध्यान २२० १ २०२ गा.४उ.१सू २४७, अपायापगमातिशय १२६ (ख)१ ६६ स्या. का १ टी १ अपाश्वस्थता ७६३ ३ ४४५ टा १० उ ३ सू ७५८ २ अपूर्वकरण ७८ १ ५६ श्राव म गा १०६-१०७ टी., विशे गा १२०२ से १२१८,प्रव द्वा.२२४ गा १३०२ टी., कर्म, भा.२ गा २ व्याख्या, यागम. १ज्ञान दर्शन चारित्र की विराधना न करना । २ जीव का परिणाम विशेष।
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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