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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संमह, आठवाँ भाग २८६ विषय वोल भाग पृष्ठ प्रमाण १ व्यवशमित वचन ४५६ २६२ ठा.६उ ३सू ५२७,प्रवद्वा.२३५ मा.१३२१, घृ.(जी.) उ.६ व्यवसाय की व्याख्या,भेद८५ १६२ ठा ३ उ ३ सू १८५ व्यवसाय सथा ३६७ १ ४२२ ठा ५ उ ३ सू ४७२ व्यवहार ३४ १ २५ विशे गा.३५८६, द्रव्य.त अध्या.८ व्यवहार और निश्चय पर ९६४ ७ १६३ दो गाथाएं व्यवहार नय और उसके ५६२ २ ४१५ अनुसू १५२ गा.१३७,द्रव्य त दो भेद अध्या ६ श्लो १३ व्यवहार नय के सद्भूत, ५६२ २ ४२४ द्रव्य.त अध्या.७ असद्भूत आदि भेद व्यवहार पाँच ३६३ १ ३७५ ठा ५२.४२१,मश ८उ सू. २४०,व्यव पीठिकाभाष्य गा.१.२. च्यवद्दार भाषा २६६ १ २४६ पन्न प ११सू १६ १ व्यवहारभाषाफेवारह भेद७८८ ४ २७२ पन्न प ११सृ.१६५ व्यवहार राशि है १८ भागम. व्यवहार राशि ४२५ २ २१ भागम व्यवहार संख्यान ७२१३४०४ ठा १० उ ३ सृ७४७ व्यवहार सत्य ६९८ ३३६६ठा १०३ ३सू ७४१,पन्न प ११सु. १६५,ध अधि ३श्लो ४१पृ.१२१ व्यवहार सम्यक्त्व १० ११ कर्म भा.१गा.१५,प्रब द्वा १४६ गा६ ४२टी व्यवहारसूत्रकाविपयवर्णन२०५ १ १८२ व्यसन सात ६१८ ६ १५५ गौ कु, ज्ञा.अ.१८ ८ १३७, मृ उ १ गा.६४. १ एक वक्त गान्त हुए कलह को फिर में उभाइने वाले वचन कहना।
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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